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________________ जैन विद्या अकारान्त (शब्दों) से परे 'टा' के स्थान पर 'रण' श्रौर अनुस्वार (-) होते हैं । प्रकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे टा के स्थान पर 'ण' और ' होते हैं । (तृतीया एकवचन के प्रत्यय ) बेव (पु.) - (देव + टा) = (देव + ण) = (देवे + ण) = देवेण (तृतीया एकवचन) (देव + टा) = (देव + ) = ( देवे + - ) = देवें (तृतीया एकवचन ) कमल (नपुं. ) - ( कमल +टा) = ( कमल + ण) = ( कमले + + ण) = कमलेण ( तृतीया एकवचन ) ( कमल + टा) = ( कमल + 2 ) = ( कमले + ) = कमलें - + सूत्र 4/333 से 'देवे' व 'कमले' हुधा है । 4/343 एं चेत: [ (च) + (इत्) + (उत्ः ) ] एं (एं) 1 / 1 च (प्र) = प्रर [ ( इत् ) - ( उत्) 5 / 1] 13. एं चेतः 89 इत्+इ, ई और उत् उ, ऊं से परे (टा के स्थान पर) एं और ण तथा ( - ) (होते हैं) । (तृतीय एकवचन ) इकारान्त और उकारान्त पुल्लिंग व नपुंसकलिंग शब्दों से परे 'टा' (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'एं', 'ग' मोर' - 'होते हैं । हरि (पु.) - ( हरि + टा) = ( हरि + एं, ग, - ) हरिएं, हरिण, हरि गामणी (पु.) और वारि ( नपुं.) के साहू (पु.), सयंभू (पु.) और मह (नपुं) के साहुएं, साहुण, साहूं सयंभूएं, सयंभूण, सयंभू 14. स्यम् - जस्-शसां लुक् ( तृतीया एकवचन ) गामणीएं, गामणीरण, गामण (तृतीया एकवचन ) वारिएं, वारिण वारि ( तृतीया एकवचन ) महुएं, महुण, महुं (तृतीया एकवचन ) 4/344 स्यम्-जस्–शसां-लुक् [(सि) + (प्रम्) - जस् - [ ( शसाम्) + ( लुक् ) ] [ ( स ) - (प्रम्) - ( जस्) - (शस् ) 6/3] लुक् ( लुक् ) 1 / 1 (प्रपभ्रंश में) सि, ग्रम्, जस् प्रोर शस् के स्थान पर लोप ( होता है) अपभ्रंश में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग शब्दों से परे 'सि' (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय), प्रम् (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय), जस् (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) प्रौर शस् ( द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर लोप होता है । ( देव + सि, अम्, जस्, शस् ) = ( देव + 0,0,0,0 ) = वेव, बेब, बेब, देव, इसी प्रकार सभी शब्दों के रूप होंगे ।
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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