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________________ 87 जनविद्या । 8. ऊसः सु-हो-स्सवः 4/338 सः (ङस्) 6/1 सु-हो-स्सवः [(सु)-(हो)-(स्सु) 1/3)] (अकारान्त शब्दों से परे) इस् के स्थान पर सु, हो और स्सु (होते हैं)। प्रकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे इस् (षष्ठी एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर सु, हो और स्सु होते हैं । देव (पु.)-(देव- ङस्)=(देव+सु)=देवसु (षष्ठी एकवचन) - (देव+ङस्)=(देव+हो)=वेवहो (षष्ठी एकवचन) (देव+ ङस्) = (देव+स्सु)=देवस्सु (षष्ठी एकवचन) कमल (नपुं.)-(कमल+ङस्)=(कमल+सु)=कमलसु (षष्ठी एकवचन).. । (कमल+ङस्)=(कमल+हो)=कमलहो (षष्ठी एकवचन) (कमल+ङस्)= (कमल+स्सु) कमलस्सु (षष्ठी एकवचन) 9. प्रामो हं 4/39 प्रामो हं [(प्रामः)+(हं)] प्रामः (प्राम्) 6/1 हं (हं) 1/1 (अकारान्त शब्दों से परे) प्राम के स्थान पर 'हं' होता है। प्रकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे प्राम (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हं' होता है। देव (पु.)-(देव+प्राम)=(देव+ह)=देवहं (षष्ठी बहुवचन) कमल (नपुं. -(कमल+प्राम्) = (कमल+ह) कमलहं (षष्ठी बहुवचन) 10. हुं चेदुद्भपाम् 4/340 : हुंचेवुयाम् [(च)+इत्) + (उद्भयाम्)] हुं (हुँ) 1/1 च (प्र)=और [(इत्)-(उत्) 5/2] . . (पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों में) इत्-+इ, ई और उत्+छ, ऊ से परे (माम् के स्थान पर) हुँ' और 'ह' होते हैं। इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग और नपुंसकलिंग शब्दों से परे 'पाम् (षष्ठी बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'हु' और 'हं' होते हैं । हरि (पु.) -(हरि+आम्) =(हरि+हुं)=हरिहुँ । (षष्ठी बहुवचन) (हरि+प्राम्)= (हरि+ह) हरिहं (षष्ठी बहुवचन) गांमणी (पु.) -इसी प्रकार गामणी के गामणीहुं और गामणीहं . ... ... (षष्ठी बहुवचन) वारि (नपुं.) - (वारि+प्राम्) =(वारि! हुं, ह) वारिहुं और वारिहं . (षष्ठी बहुवचन) साहु (पु.) --(साहु+प्राम्) =(साहु + हुं, हं) =साहुहुं और साहुहं (षष्ठी बहुवचन) सयंभू (पु.) --इसी प्रकार सयंभू के . . . . . =सयंमूहुं और सयंमूह
SR No.524756
Book TitleJain Vidya 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size12 MB
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