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________________ जैन विद्या 7.1.3-4 म.9-10 9.1.5-6 विषमवृत्त मात्रिक ( 18) गाथा-इसके पांच प्रकार परिलक्षित हैं यथा - (i) उग्गाहा (उद्गाथा या गीति) (12+18, 12+18) प्रत्याणुरूवभावो हियए पडिफुरइ जस्स वरकइयो । प्रत्थं फुडु गिरइ निरा ललियक्खरनेम्मिएहि तस्स नमो ॥ (ii) पथ्या (12+18) सो जयउ महावीरो झारणाणलहुणियरइसुहो जस्स । नाणम्मि फुरइ भुप्रणं एक्कं नक्खत्तमिव गयणे ।। (iii) गाहू (उपगीति) (12+15, 12+15) -- मयरद्धयनच्चु नंडतिउ, जंबूकुमार भेल्लियउ । वहुवाउ ताउ रणं दिट्ठउ, कट्ठमयउ वाउल्लियउ ।। (iv) परपथ्या (12+18, 12+15) -- जाणं समग्गसदोहझेदुउ, रमइ मइफडक्कम्मि । ताणं पि हु उवरिल्ला कस्स व बुद्धि परिप्फुरइ ॥ (v) विपुला (12+18, 12+15) - रइविप्पोयसंतत्तमयणसयणं व कुसुमसंवलियं । धारंति ताउ विदुमहीरय रुइंदतुरं प्रहरं ॥ दंडक -- प्रलंकियनिसंतेण तरुणारुणदित्ततेएण बालेण पसरेण वा तेण, सूयाहरे-दिण्णवीवोहदित्ती निहित्ता सुदूरे किया निप्पहा, विद्धिवद्धावणावंतलोएहिं वजंतपडुपडहखरतरडसरमंद बहुमद्दलुद्दाम 'कलवेणु-वीणाझुणी, सालकंसालतालानुसारेण पाणंदवरमत्तधुम्मततरलच्छिनच्चंततरुणीमहाथट्टसंघट्टतुटतमाहरणमणिमंडिया चउप्पहा । 1.6.9-10 4.14.1-2 (19) 48.1-5 4.14.9-10 (20) बोहउ (13+11, 13+11) - जाणमि एक्कु जि विहि घडइ, सयलु वि जगु सामण्णु । जे पुणु प्रायउ निम्मविउ को वि पयावइ अण्णु ॥ (21) मणिशेखर (23+10 दोनों पदों में अंत रगण) - कहि मि महिपडियतरुपण्णसंछन्नया, संठिया पन्नया । कहि मि फणिमुक्कफुक्कारविससामला, जलिय दावनला ॥ 5.8.22-23
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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