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जंबूसामिचरिउ के यशस्वी महाकवि
वीर का व्यक्तित्व
-डॉ. महेन्द्रसागर प्रचंडिया
वैदिक, बौद्ध और जैन संस्कृतियां मिलकर भारतीय संस्कृति को जन्म देती हैं। वैदिक वाङ्मय को वेद, बौद्ध वाङ्मय को त्रिपिटक और जैन साहित्य को आगम की संज्ञा से अभिहित किया जाता रहा है । प्रागम चार अनुयोगों में विभक्त किया गया है। प्रथमानुयोग-पुराण, कथा, चरित । द्रव्यानुयोग-सैद्धांतिक साहित्य । चरणानुयोग-प्राचारपरक धार्मिक साहित्य । करणानयोग-जैन भगोल, गणित, ज्योतिष आदि । ये मिलकर अनुयोग की संज्ञा प्राप्त करते हैं। प्रथमानुयोग के वातायन से आधुनिक प्राकृत, संस्कृत, मागधी, अर्द्ध-मागधी, अपभ्रन्श तथा अन्य अनेक भारतीय भाषाओं में जैन साहित्य रचा गया है। अपभ्रन्श साहित्य में भी प्रभूत परिमाण में जैन काव्य उपलब्ध हैं । महाकवि वीर प्रणीत "जंबूसामिचरिउ" काव्य-कृति इस परम्परा में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। यहां इस महत्त्वपूर्ण कृतिकार के व्यक्तित्व के विषय में चर्चा करना हमारा मूलाभिप्रेत रहा है ।
व्यक्तित्व क्या है ? इस बिन्दु पर बहुविध विचार हुए हैं । प्राण अथवा आत्मतत्त्व जब पर्याय ग्रहण करता है तब वह प्राणी कहलाता है। प्राणतत्त्व नित नवीन किन्तु शाश्वत है जबकि पर्याय में नित्य परिवर्तन हुआ करते हैं, वह विनाशीक है । अन्तर और बाह्य बातों का समीकरण जब पर्याय को परिपुष्ट कर जो रूप प्रदान करता है कालान्तर में वही उस पर्याय का व्यक्तित्व बन जाता है । व्यक्तित्व में प्रतिक्षण परिवर्तन होते रहते हैं। प्राणी की