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________________ जैन विद्या रावण ने सीता का हरण कर उस समय राम का विरोध किया और पवनसुत की पूंछ में आग लगा दी, उसने लंका का विध्वंस कर दिया । ॥ 21 ॥ हे रावण ! तूने राम की सीता का हरण कर बुरा किया। हे बुद्धिमान् ! जो जो बीता वह देख और वह वह दुःख सहन कर । 11 22 11 हे रावण ! तेरे दिन बांके थे, तेरी बुद्धि और शरीर भी बाँके थे, एक परस्त्री के सम्बन्ध से देखते-देखते सब निष्फल हो गया । 11 23 11 139 हे रावण ! तूने परिजनों और लंका का विनाश अपनी आंखों से देखा है, हे दशमुख ! परस्त्री का यही गुण समझ कि तू नरक में पड़ा है । 11 24 11 मूर्ख लोगों ! देखो, एक परस्त्री के कारण रावण नरक में पड़ा है। अशुभ कर्मों ने सब नाश कर दिया । 11 25 11 रावण कहता है - बुद्धिमती ! सुन, कर्म कुछ नहीं बिगाड़ता है, दैव न तो किसी की स्त्री का हरण करता है न शरीर में कुबुद्धि उत्पन्न करता है ।। 26 हे बुद्धिमान् ! देख, एक परस्त्री के कारण लंका जल गई । रावण युद्ध उलझ गया, ( उसका ) घर रहा न साथी । में 11 27 11 लंकागढ़ और सागर अटल थे, घर में मन्दोदरी रानी थी। रावण ने परस्त्री के कारण वंश का नाश करा दिया । 11 28 11 लंका जलकर राख हो गई, परिजन क्षय हो गये, रावण का देखते देखते नाश हो गया, और भी कौन स्थिर रहा । || 29 11 हे बुद्धिमती, लंका स्वर्णजटित थी, उसके पार्श्व मणिमण्डित थे, चारों प्रोर समुद्र था, सीता हरण के कारण उसका विनाश हो गया । 11 30 11 पवनसुत ने समुद्र लांघकर रामकार्य कर दिया। सीता हरण के कारण लंका चली गई, रावण का क्षय हो गया । 11 31 11 कागढ़ और सागर को अटल समझकर रावणराय निःशंक था । परस्त्री के कारण सब निशाचर जीते जाकर नष्ट हो गये । 11 32 11 यदि अशुभ कर्म का अनुसरण करे तो लंका गढ़ क्या करे ? सागर भी क्या करे ? 11 33 11 में अपयश फैल गया और वंश के कलंक लग गया । ********** 1 महिमण्डल 11 34 11
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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