SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 138 जनविद्या रावण सीता हरिवि करि राम विरोधिउ ताम । पुट्ठिहि लग्गउ पवरणसुभ, लंक विधंसी ताम ॥21॥ रावण बुरुहउ कियउ पई, रामह सीय हरंतु। जं जं वित्तउ पेक्खु वहा, तं तं दुक्ख सहंतु ॥22॥ रावण वंके दिवहड़ा, वकिय बुद्धिसरीरे । पेक्खंतहं णिफ्फलु सयल, एक्कहि परतिय लग्गि ॥23॥ रावण रणयणहं पेक्खु तुहं, (धरण), परियण लंक विणासु । परतिय जारणहु एहु गुणु, रणरयहं पडिउ दसासु ॥24॥ रावण परयहं दुह सहइ, पेक्खह मूढा लोइ । एकहं परतियकारणहं, असु (ह) हं' कम्म विगोइ ॥25॥ रावण भरणइ रे सुरणहु वुहा, कवणु रण कम्म विगोइ । दयउ ण कासु विधणु हरइ, कुबुधि सरीरहं देइ ॥26॥ लंक जलंतिय पेक्खु (वहा) बह, एकहिं परतिय लग्गि । रावण रणहं वि गुत्तियो, णा घरु भयउ णा सग्गि ॥27॥ लंकागढ़ सायर अटलु, घरि मंदोयरि राणि । रावण परतियकारणहि, वंसहं दिण्णउ पाणि ॥28॥ लंका जलि रक्खहं हुइय, परियणु गयउ खयंतु । रावण पेक्खत खय गयो , अवरु विकवण थिरंतु ॥29॥. लंका कंचनजडिय (वुहा)10 वुह, मणिमंडिय वहु पास । रयणायरु पासहं फिरिउ, सीताहरण विणास ॥30॥ लंधिवि सायरु पवणसुय, रामहं कज्जु करंतु । सीयहरण लंका गइय, रावण खय हुविजन्तु ॥31॥ लंकागढ सायर अटलु, रावणिराव णिसंकु । णिसियर सयल विणिज्जि करि, परतिय कज्जु खयंतु ॥32॥ लंकागढ काहउ करइ, सायरु काइ करेइ । असुहकम्मु जइ अणुसरइ,............. .............॥33॥ महिमंडल अपजस सरियो , वंस कलंकु चडेइ ॥34॥
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy