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________________ 118 जनविद्या मगध जनपद में राजगृह नाम का सुन्दर नगर है, जहां भगवान् महावीर का समवशरण पाया। वहाँ राजा श्रेणिक ने अन्तिम केवली का चरित्र भगवान् से पूछा। तब गौतम गणधर ने कहा - मगध के वर्धमान ग्राम में सोमशर्मा नाम का ब्राह्मण रहता था। उसके भवदत्त और भवदेव दो पुत्र हुए। पिता के स्वर्गवास और माता के सती हो जाने पर विरक्त होकर भवदत्त ने सुधर्ममुनि से दीक्षा ले ली। 12 वर्ष के बाद संघ पुनः भवदत्त के नगर में पाया अतः भवदत्त अपने छोटे भाई भवदेव को दीक्षित करने की इच्छा से गुर्वाज्ञा से भवदेव के घर गया और वहीं प्राहार किया। लौटते समय भवदेव उन्हें पहुंचाने सुधर्ममुनि के संघ तक आया जहाँ भवदेव ने भाई के समझाने पर संकोचवश और बेमन से मुनिदीक्षा ले ली, पर उसका मन अपनी मंगेतर 'नागवसू में ही लगा रहा । भवदेव ने संघ में 12 वर्ष बिताये। . 12 वर्ष बाद संघ पुनः उसी नगर में पाया । मुनि भवदेव बहाना बनाकर गांव में आ गये, रास्ते में ही उनकी अपनी मंगेतर से भेंट हो गई जो व्रतादि के कारण कृशगात्रा थी। नागवसू से वार्तालाप करते समय उनकी शेष भोगेच्छा प्रकट हो गई पर नागवसू के समझाने पर वे पुनः प्रायश्चितपूर्वक तप करने लगे और तृतीय स्वर्ग प्राप्त किया। अनन्तर भवदेव का जीव पूर्व विदेह में राजा महापद्म का पुत्र शिवकुमार हुआ और गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए भी धर्माराधना कर स्वर्ग में देव हुआ । तदनन्तर भवदेव का जीव राजगृह में अरहदास श्रेष्ठी के यहाँ जम्बूकुमार नाम का पुत्र हुआ। सुधर्मास्वामी के उपवन में आने पर जम्बूकुमार दीक्षा लेना चाहते हैं, पर माता के सभझाने पर रुक जाते हैं। इधर चार सुन्दर कन्याओं के साथ उनका विवाह कर दिया जाता है। जम्बूकुमार के हृदय में पुनः वैराग्य जागृत होता है, पत्नियां और माता उन्हें समझाती हैं, समझाते-समझाते आधी रात बीत जाती है, तभी विद्युच्चर चोर चोरी करने आता है । मां से जम्बूस्वामी के वैराग्य की भावना जानकर वह कहता है कि या तो जम्बू को रागी बना दूंगा या स्वयं वैराग्य धारण कर लूंगा । तब जम्बूकुमार की माता विद्युच्चर को अपना छोटा भाई कहकर जम्बू के पास ले जाती है। जम्बूकुमार और विद्युच्चर दोनों एक दूसरे को अपने-अपने तर्कों और पाख्यानों से प्रभावित करना चाहते हैं । एक रागी बनाना चाहता है तो दूसरा विरागी । अन्त में जम्बूकुमार की जीत होती है और वे दीक्षा लेकर, कठोर तप तपकर केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्तिश्री का वरण करते हैं । इस प्रकार जम्बूकुमार का चरित्र राग से विराग की कहानी है ।
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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