SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 116 जनविद्या [( )+( )+( )......] | 1/1 अक या सक - इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर + चिह्न किन्हीं शब्दों में संधि का द्यातक है। यहां 1/2 अ याक सक - अन्दर कोष्ठकों में गाथा के शब्द ही रख दिये गये हैं। [( )-( )-( )......"] 2/1 अक या सक - इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर -- चिह्न समास का द्योतक है। 2/2 अक या सक - -जहां कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (जैसे 1/1, 2/1... ) आदि) ही लिखी है, 3/1 अक या सक - वहां कोष्ठक के अंदर का शब्द संज्ञा है । -~-जहां कर्मवाच्य कृदन्त, आदि प्राकृत के नियमानुसार नहीं बने हैं, वहां कोष्ठक के | 3/2 अक या सक -- बाहर 'अनि' भी लिखा गया है। उत्तम पुरुष/ एकवचन उत्तम पुरुष बहुवचन मध्यम पुरुष एकवचन मध्यम पुरुष/ बहुवचन अन्य पुरुष एकवचन अन्य पुरुष बहुवचन । । । । । । । । । । । । प्रथमा/एकवचन प्रथमा/बहुवचन द्वितीया/एकवचन द्वितीया/बहुवचन तृतीया/एकवचन तृतीया/बहुवचन चतुर्थी/एकवचन चतुर्थी/बहुवचन पंचमी/एकवचन पंचमी/बहुवचन षष्ठी/एकवचन षष्ठी/बहुवचन सप्तमी/एकवचन सप्तमी/बहुवचन संबोधन/एकवचन संबोधन/बहुवचन 7/1 । । ।
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy