SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 102 जैनविद्या जंबूस्वामी एवं उनके परिजनों का वैराग्य प्रसंग यह वैराग्य प्रसंग राजगृह के श्रेष्ठी श्ररदास व उनकी पत्नी जिनमती के पुत्र, हमारे आधार ग्रन्थ के चरितनायक जम्बूकुमार का है । मुनि सुधर्मस्वामी से अपने पूर्वभव के वृत्तान्त सुनकर ( 8.4) जंबूकुमार को वैराग्य उत्पन्न हो जाता है और वे मुनिश्री से दीक्षा प्रदान करने के लिए निवेदन करते हैं । जम्बूकुमार को पूर्वभव के स्मरणमात्र से ही वैराग्य हो जाता है जैसा कि शिवकुमार को हुआ था परन्तु जम्बूकुमार का वैराग्योत्पत्ति से लेकर दीक्षाग्रहण करने का प्रसंग अत्यन्त रोचक व अभूतपूर्व है । वह प्रसंग व उस समय की घटनाएं आदि अरदास - विद्युच्चर व जम्बूकुमार की चारों नववधुत्रों के लिए वैराग्योत्पादक बन जाती हैं । अतः इन सबके वैराग्य के लिए प्रेरक होने के कारण उस प्रसंग का निरूपण भी यहाँ प्रासंगिक है । जब जम्बूकुमार मुनि सुधर्मस्वामी से दीक्षा प्रदान करने हेतु निवेदन करते हैं तब मुनिराज दीक्षा के लिए माता-पिता की स्वीकृति भी आवश्यक बताते हैं । जम्बूकुमार के माता-पिता, परिजन तथा उनकी वाग्दत्ता वधुएं व उनके माता-पिता आदि उन्हें दीक्षा लेने से रोकते हैं, नानाविध समझाते हैं पर शिवपथ के उस भावी पथिक के सामने सब तर्क व्यर्थ रहते हैं । उन्हें अपने निश्चय से डिगाने के सब ( प्रकार के) उपायों को निरर्थक जान सबने एक अन्तिम सशर्त उपाय उनके सम्मुख रखा कि कुमार केवल एक दिन के लिए गृहस्थी बनें । वे केवल एक दिन के लिए उन चारों वाग्दत्ता कन्याओं से विवाह करें । यदि कुमार गृहस्थी बन जावें तो सबका मनोवांछित हो ही जाता है और यदि वे तब भी रतिसुख से विरत ही रहें, निर्लिप्त ही रहें तो फिर वे चाहें तो दूसरे दिन प्रातः ही दीक्षा ले सकते हैं । बड़ी विचित्र शर्त है ! दृढ़ मनोरथी जम्बूकुमार ने सबका मन रखने के लिए इस सशर्त विवाह के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी । विवाह सम्पन्न हुआ और आई वह निर्णायक रात जो जम्बूकुमार के जीवन की दिशा निर्धारित करनेवाली है । 'भोग या वैराग्य' - कुमार दोनों में से किसे चुनते हैं ? वे अपने मन पर दृढ़ रहते हैं या राग- पाश में बंध जाते हैं ? सबके मन में यही द्वन्द्व था । परिणाम के प्रति सभी अत्यन्त उत्सुक थे । कैसी अनोखी घटना है ! उस मिलन - यामिनी में चारों वधुएं कुमार को अपनी ओर आकर्षित करने का भरसक प्रयास करने लगीं पर उस दृढ़चरित, स्थिरचित्त, स्व-स्थित जंबूकुमार पर उनकी चेष्टाओं का कोई प्रभाव नहीं हुआ। तब एक वधू कुमार को लक्ष्य कर प्रनेक व्यंग्य करती है श्रीर अपनी सपत्नियों को मूर्ख धनदत्त की कथा सुनाती है जो प्राप्त भोग-सामग्री को छोड़कर श्रप्राप्य की प्राकांक्षा करता है । तब जम्बूकुमार अपने ऊपर अप्रत्यक्षरूप से लगे मूर्खता के इस आरोप को प्रसिद्ध करने के लिए विषयासक्त कौवे की दुर्गति की कथा सुनाते हैं । वधुएं राग-रंजित कथाएं कहती हैं तो कुमार उसके उत्तर में विराग- कथा कहते हैं । इस प्रकार उत्तर- प्रत्युत्तर में दोनों पक्ष परस्पर चार-चार कथाएं सुनाते हैं पर वधुएं अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पातीं ।
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy