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________________ जैनविद्या 95 40. पइ होसइ जाणिवि भुषणसारु, नीसेससत्थसंपत्तपारु । इय कज्जे कोउहलेण ताउ, नाणाविह विज्जउ सिक्खियाउ । भासातय-लक्खणु लक्खु मुणिउ, दंसणनएहिं सहुँ तक्कु सुणिउ । छंदालंकार निघंटसत्थु, धम्मत्थ-कामकारणु पसत्थु । गाएव्वउ नक्चेव्वउ सचित्तु, वीणाइवज्जु जाणिउ विचित्तु । अवराई मि मुणियई जाई जाइं, को लखेवि सक्कइ ताई ताई। 4.12 41. निम्मलगुणगोत्तविसालियाहं, पई एक्कु जि किर कुलबालियाहं । एक्कु जि जणेरि जगि एक्क ताउ, एक्को जि देउ जिणु वीयराउ । परिणयणु अम्ह न करंतु कंतु, जइ परतउ लेइ विराववतु । घत्ता-अहपुणु जइ विराहु घडइ दिट्ठिहे चडइ अच्चग्गलु बोल्लु न जाणहुँ । - तो तरलच्छिविलासवसु रइलद्धरसु जम्मावहि बल्लहु माणहुँ । 11.8.10 42 खंडयं-इयवयणं हिययच्छियं, इयराहि मि समत्थियं ।। . कवपरिणयणे वयधणं, दूरे तस्स तवोवणं ।। 8.11 43.9.2 44. पउमसिरिपमुह वहुप्राउ जाउ, पव्वज्जिउ अज्जिउ जाउ ताउ। 10.21 45. 5.2 46.5.2 47.5.3 48. 10.15 49. 3.2 50.4.10-11 51.5.9 52. संचरई सुहावणु मलययवणु, बिज्जाहर मणिणिमाणदवणु । सरलावियरलिकुरुलभंगु, विरहिणितिलंगिनीसाससंगु । सज्झइरिरणावियसुक्कवंसु. कण्णाडिकणिरकण्णावतंसु । ............... | कंतलिकुंतलभरपत्तखलणु," 4.15
SR No.524755
Book TitleJain Vidya 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1987
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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