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जैनविद्या
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40. पइ होसइ जाणिवि भुषणसारु, नीसेससत्थसंपत्तपारु ।
इय कज्जे कोउहलेण ताउ, नाणाविह विज्जउ सिक्खियाउ । भासातय-लक्खणु लक्खु मुणिउ, दंसणनएहिं सहुँ तक्कु सुणिउ । छंदालंकार निघंटसत्थु, धम्मत्थ-कामकारणु पसत्थु । गाएव्वउ नक्चेव्वउ सचित्तु, वीणाइवज्जु जाणिउ विचित्तु ।
अवराई मि मुणियई जाई जाइं, को लखेवि सक्कइ ताई ताई। 4.12 41. निम्मलगुणगोत्तविसालियाहं, पई एक्कु जि किर कुलबालियाहं ।
एक्कु जि जणेरि जगि एक्क ताउ, एक्को जि देउ जिणु वीयराउ ।
परिणयणु अम्ह न करंतु कंतु, जइ परतउ लेइ विराववतु । घत्ता-अहपुणु जइ विराहु घडइ दिट्ठिहे चडइ अच्चग्गलु बोल्लु न जाणहुँ ।
- तो तरलच्छिविलासवसु रइलद्धरसु जम्मावहि बल्लहु माणहुँ । 11.8.10 42 खंडयं-इयवयणं हिययच्छियं, इयराहि मि समत्थियं ।।
. कवपरिणयणे वयधणं, दूरे तस्स तवोवणं ।। 8.11 43.9.2 44. पउमसिरिपमुह वहुप्राउ जाउ, पव्वज्जिउ अज्जिउ जाउ ताउ। 10.21 45. 5.2 46.5.2 47.5.3 48. 10.15 49. 3.2
50.4.10-11
51.5.9 52. संचरई सुहावणु मलययवणु, बिज्जाहर मणिणिमाणदवणु ।
सरलावियरलिकुरुलभंगु, विरहिणितिलंगिनीसाससंगु । सज्झइरिरणावियसुक्कवंसु. कण्णाडिकणिरकण्णावतंसु ।
............... | कंतलिकुंतलभरपत्तखलणु,"
4.15