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________________ जैन विद्या रस-योजना कविश्री धनपाल द्वारा "भविसयत्तकहा " में श्रृंगार, वीर, और शांत रस का मुख्यरूप से समायोजन हुआ है । कमलश्री के सौंदर्यवर्णन के साथ-साथ कवि ने उसकी धार्मिक भावना की ओर भी संकेत किया है। उसके अनुपम सौन्दर्य और सौभाग्य को लखकर कामदेव भी खो जाता है। 18 नख - शिख वर्णन प्राचीन परम्परा के अनुकूल ही है 118 प्रस्तुत काव्यकृति में प्रेमपूर्वक विवाह है पर सम्भोग का खुला चित्रण भी है, सुमित्रा के चंचल सौंदर्य को चित्रित करते हुए कवि कहता है- मानो वह लावण्य जल में तिर रही थी। 20 विप्रलम्भ की व्यंजना में यह महत्त्वपूर्ण बात दिखाई देती है कि वियोगिनी स्त्रियाँ प्रांसू ही नहीं बहातीं श्रपितु कठोरता से अपने कर्तव्य का पालन भी करती हैं । कमलश्री इसका उदाहरण है । युद्धवर्णन में वीर रस के अभिदर्शन होते हैं । यथा तो हरिखरखुरग्ग संघटिं छाइउ रणुझतोरणे । गं भडमच्छरग्गिसंधुक्करण घूम तमंधयारणे ॥ 33 14.1 4.1-2 कथा का पर्यवसान शांत रस में हुआ है । संसार की प्रसारता दर्शाते हुए कविश्री धनपाल कहते हैं— हो नारद संसारि प्रसारइ तक्ख रिग विट्ठपरणट्ठवियारह । पाइवि मणुग्रजम्मु जरगवल्लहु बहुभवकोडिसहासि तुल्लहु ॥ जो प्रबंधु करई रहलंड तहो परलोऐ पुणुवि गउ संकछु । जड़ वल्लहविप्रोउ नउ दीसह जइ जोव्वणु जराए न विरणासह ॥ दिसामंडलं जत्थ गाउं अलक्ख, पहायं पि जाणिज्जए जम्मि दुक्खं । 18. 13. 1. प्रकृतिचित्ररण काव्य में अनेक सुन्दर प्रकृतिवर्णन हैं । द्वीप द्वीपांतर में विचरण के कारण कविश्री धनपाल को प्रकृति के साहचर्य की बड़ी आवश्यकता हुई और उन्होंने उसका वर्णन बखूबी किया है । वन गहनता का एक चित्र द्रष्टव्य है— 4. 3. 2. अर्थात् वन इतना गहन था कि जहाँ प्रभात का भी कठिनाई से पता चलता था। इसी प्रकार के अन्य प्रकृतिवर्णन जैसे श्ररण्य का वर्णन, 21 गहनवन का वर्णन, 22 तिलकद्वीप के वन का स्वाभाविक चित्रण एवं सन्ध्या का वर्णन 24 दर्शनीय है । प्रकृतिवर्णन में बसन्त राजा ठाट से प्रवेश करते हैं। घर-घर में बसंतोत्सव की धूम मची है । यथा—
SR No.524754
Book TitleJain Vidya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1986
Total Pages150
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size13 MB
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