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मुखपृष्ठ चित्र परिचय मुखपृष्ठ पर प्रकाशित चित्र संस्थान की भविसयत्तकहा की प्राचीनतम पाण्डुलिपि (सं. 1540 वि०) वेष्टन सं. 755 पत्र सं. 115 साइज 120X5" के अन्तिम दो पृष्ठों का है जिसका मूलपाठ यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है
(घोरु वीरु तव.) यरणु चरेप्पिणु, चउविहु देवागमणु करेप्पिणु । विण्णिवि सुहमसुहाई चएप्पिणु, गय सिविलोए सरीरु मुएप्पिणु । भविसयत्तु पुणु सुरु हेमंगउ, सिरिवड्ढणु होएवि सिद्धिहिं गउ । सा भविसाणरूव तणु मेल्लिवि, रयणचूलु सुरलोउ समेल्लिवि । राउ णंदिवड्ढणु धरधारउ, पुणु हुउ सासइ सिद्ध भडारउ । वसिविधरासमि हलुत्तालि, विरइउ एउ चरिउ धणपालें । विहिखंडहिं बावीसहि संधिहि, परिचितियरिणयहोउणिवंधिहिं । धक्कड वणिवंसि माएसरहो समुब्भवेण । धणसिरि देविसुएण विरइउ सरसइसंभवेण ।।9।। अहो लोयहो सुयपंचमिविहाणु , इउ जं तं चितिय सुहरिणहाणु । दूरयरपरणसियपावरेणु, इह जा सा वुच्चइ कामधेणु । फलु देइ जहिच्छिउ मच्चलोए, चिंतामणि वुच्चइ तेण लोए । इह जा सा बुच्चइ भुवरणसंति, अह मोक्खहो सुह सो वाणपंति । गरणरिहुं दुक्ख इं अवहरेइ, जो जं मन्गइ तहो तं जि देइ । रिणवाहइ जो रिणयसिरिभरेण, सो पुण्णवंतु कि वित्थरेण । उववास करइ जो सत्तसट्ठि, उज्जमणि तहो सुहु तुट्ठि पुट्ठ ।
जइ भज्जइ अंतरि विग्धु होइ, तहो सद्दहा रिण फलु तं जि होइ । घत्ता-ग्रह कि वह वायावित्थरेण इक्क वि चित्त महंतरिण ।
अणुमोइं ताहि तिहु संपण्ण गुणंतरिण ।।10।। अइ उरि अइरावइ दीहरच्छि, धणयत्तहो गेहिरिण धरणयलच्छि । उज्जमियताए चिर संजुएण, भाविय धणमित्ति तहे सुएण । तह कित्तिसेण णामुज्जयाई, अणुमोइय वज्जोयरि सुयाए । तहो फलेण ताई तिणि विजणाई, चउथइ भवि सिवलोयहो गयाई। पहिलइ धरणयत्तहो धरणयदित्ति, इयरई विणिवि धमित्तु कित्ति । विज्जय भवि पंकयसिरि सुरूव, सुउ भविसयत्तु भविसाणरूव । तिलिगु हणेवि विण्णिवि सुत्तेय, पहु चूलुरयण चूलाइदेव । तइयइ भविसत्तु वि कणय तेउ, कुउ दहभई तहि जि विमारिण देउ ।
चोत्थइ भवि सुयपंचमि फलेण, गिद्दड्ढ कम्मु झारणाणलेण फलेण । घत्ता-णिसुणंतपढंतहं परिचितंतह अप्पहिय । धरणवालि तेण, पंचमि पंचपयारकिय ।।114 छ।। 22
इति धनपालकृत पंचमी भविष्यदत्तस्य समाप्त