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________________ जनविद्या 119.. - विशिष्ट का प्राश्रय सबको विशिष्टता देता है । - मलिन होते हुए भी निरुपद्रवी अधीनों को सब प्राश्रय देते हैं । - जीव एक दिन के लिए भी जहाँ रहता है उससे उसकी प्रीति हो जाती है । प्राश्रय के सामर्थ्य से मनुष्यों को सब कुछ मिलता है । - उत्तम सेवकों और मित्रों के सहयोग से इष्टसिद्धियां हो जाती हैं । . - संसार में समस्त इच्छाएं निःसार तथा दुःख का कारण हैं। - अन्तरहित इच्छा को धिक्कार है । - सभी लोग मनोज्ञ विषय को ही चाहते हैं । - अभीष्ट पदार्थ की प्राप्ति पर सबको प्रानन्द होता है। - खेद है कि जीव यम के दांतों के बीच रहकर भी जीवित रहना चाहता है। - विजय के इच्छुक मनुष्य उपाय करते ही हैं। - हाथी के योग्य घंटा कुत्ते को शोभा नहीं देता अर्थात् वस्तुएं यथास्थान ही सुशोभित होती हैं। - अच्छी तरह उन्नत हुमा व्यक्ति सबका प्राश्रय होता है । - अपनी उत्तरोत्तर उन्नति से सब सन्तुष्ट होते हैं । - उदारचित्तवालों का कोप विनती (चरण-प्रतिपात) पर्यन्त ही रहता है।
SR No.524754
Book TitleJain Vidya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1986
Total Pages150
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size13 MB
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