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________________ जनविद्या श्मशान का वर्णन तं च केरिसं कालगोयर, सिवसियालदारियमसोयरं । रक्खसीमुहामुक्करणीसणं, सूलभिण्णचोरउलभीसणं । धूमगंधधावंतसाणयं, सव्वदेहिवेहावसारणयं । पवरणपेल्लगुल्ललियभप्परं, भग्गमारणविक्खित्तखप्परं। 1.13 अर्थात्-वह श्मशान भूमि मानो यमराज की गोचर भूमि ही थी। वहां शृगालशृगालियाँ मृत मनुष्यों के उदर फाड़ रही थीं, राक्षसी के मुख की विकराल ध्वनि सुनाई देती थी । शूल से छेदे गए चोरों से वह भूमि भीषण दिखती थी । धुएँ की गन्ध के कारण कुत्ते दौड़ रहे थे । वह समस्त देहधारियों के देहावसान का स्थान था। वहां चिताओं की पवन से प्रेरित भस्म उड़ रही थी और टूटे हुए कपाल बिखरे पड़े थे । सुदत्त मुनि को नंदनवन शम, दम, और यम की साधना करनेवाले संतों के निवास के अनुकूल नहीं लगा । अतः वे श्मशान में चले गये जहां शुभ लेश्या से युक्त तथा दुर्भावना सेर हित होकर वे चतुर्विध संघ सहित विराजमान हुए। इसी प्रकार प्रभात और रात्रि, राजमहल और चाण्डाल-वाड़ा, विवाह-भोज, भोजन में विष और श्मशानयात्रा, भोगोपभोग और वैराग्य, श्राद्ध प्रादि के वर्णन रोचक और प्रभावोत्पादक हैं । सबसे अधिक रोचक यशोधर और उसकी माता चन्द्रमती के मयूर, कुक्कुट, नकुल, सर्प, मैसे, ग्राह, मादि की योनियों में जन्म लेने और पूर्व जन्म के बैर तथा पाप के कारण कष्ट भोगने के वर्णन हैं। पुष्पदंत ने व्यक्तियों के चरित्र-चित्रण में भी अपनी कुशलता, अनुभव, कल्पना तथा काव्यशक्ति का सुंदर परिचय दिया है। राजा मारिदत्त, भैरवानंद, सुदत्तमुनि, क्षुल्लकझुल्लिका, चण्डमारी आदि चरित्रों का चित्रण बहुत प्रभावोत्पादक बना है। सारी कथा हिंसा के विरोध तथा उसके कुपरिणाम पर केन्द्रित है । वास्तविक नरबलि तथा पशुबलि के अनौचित्य और उससे होनेवाली हानि का वर्णन बहुत लोमहर्षक है । इतना ही नहीं केवल आटे के कुक्कुट की बलि देने और उसका कल्पित मांस खाने का भी जो कुपरिणाम भुगतना पड़ा वह वास्तविक पशुबलि के परिणाम से कम दुःखदायीं और भयंकर नहीं था । इन पूर्वभवों के कथा-खंडों में करुणा, भयानक, वीभत्स और अद्भुत रसों का खूब परिपाक हुआ है। इस कथा में सुदत्त मुनि का चरित्र-चित्रण बड़ा उदात्त है । एक प्रकार से सारी कथा का नेतृत्व उन्हीं के हाथों में है । क्षुल्लक-क्षुल्लिका को वे ही राजा मारिदत्त के पास भेजते हैं जो अपने पूर्वभवों का वृत्तांत राजा को कहते हैं । मुनि ही अन्य राजाओं को उनके पूर्वभव सुनाते हैं । मारिदत्त, भैरवानंद, मारिदत्त के माता-पिता और स्वयं मुनि इन सबके पूर्वभवों का प्राश्चर्यजनक काव्यमय वर्णन, गंधर्व द्वारा इस कथा में जोड़ा गया है ।
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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