SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनविद्या 43 प्रयुक्त हुए हैं । 28 मात्रा के दुवई छंद के अतिरिक्त कहीं-कहीं 5 तथा 8 मात्राओं के छंद तथा 16 और 20 मात्राओं के पादाकुलक और मंजुतिलका छंदों का भी उपयोग किया गया है । वणिक छंदों में 6 वर्णों के सोमराजी के अतिरिक्त 8 तथा 12 वर्णों के छंदों का भी प्रयोग हुआ है । पुष्पदंत की जिह्वा पर मानो सरस्वती विराजमान है। वे विभिन्न प्रकार के छंदों का प्रयोग बहुत सरलता से करते हैं । कथा कहते जाते हैं और काव्य-रसिकों को मुग्ध करते जाते हैं। वर्णन वैचित्र्य कथा का प्रारम्भ चतुर्विंशति स्तुति से होता है। यह स्तुति दिगम्बर जैन समाज में इतनी लोकप्रिय है कि इसे नित्य पूजा में देव पूजा की जयमाल के रूप में स्थान प्राप्त है । इसका प्रारंभ ऋषभदेव की वंदना के घत्ता छंद से होता है वत्ताणहाणे, जण घणवाणे, पई पोसिउ तुहुँ खत्तधर । सवचरणविहाणे, केवलणावं, तुहुँ परमप्पउ परमपर । बारह अर्धालियों में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करने के पश्चात् अंत पुनः निम्नलिखित घत्ता से होता है इह जाणियणामहि, कुरियविरामहि परिहिवि णविय सुरावलिहिं । पणिहणहि प्रणाइहि समियकुवाइहि पणविवि परिहंतावलिहि ॥ 1.2 पत्ता अर्थात्-मैं उन अरिहंतों को प्रणाम करता हूँ जिनके नाम विख्यात हैं, जो पापों का शमन करनेवाले हैं, देवों से वंदित हैं, अनादि निधन हैं तथा कुवादियों को शांत करनेवाले हैं। यौधेय देश और राजपुर फिर उन्होंने यौधेय देश तथा उसकी राजधानी राजपुर का वर्णन किया है जोहेयउ गामि अत्यि बेसु, गं धरणिए परियउ विश्ववेसु । जहिं चलई जलाई सविम्भमाई, णं कामिणिकुलई सविम्भमाई।. .. भंगालई गं कुकइत्तणाई, जहि गोलणेत्तणिबई तणाई। कुसुमियफलियई जहि उववणाई, णं महिकामिणिणवमोठवणाई। 1.3.4-7 अर्थात् -- यौधेय नाम का देश है मानो धरा ने दिव्य रूप धारण किया हो । नदियों में भंवर पड़ता हुआ जल ऐसे प्रवाहित था मानो कामिनी समूह हाव-भाव दिखाते चल रहा हो । नीले बंधनों से युक्त ,गों सहित घास के पूले ऐसे थे मानो नीले नेत्रों से युक्त कामुक स्त्रियों के संबंध में कुकवियों की कविताएँ । वहाँ के उपवन फल-फूलों से परिपूर्ण थे मानो महीरूपी कामिनी का नया यौवन हो।
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy