________________
गायकुमारचरिउ की सूक्तियाँ
और उनका अध्ययन -डॉ० कस्तूरचंद "सुमन"
हिन्दी साहित्य में बिहारी सतसई के सम्बन्ध में विद्वानों की मान्यता है कि सतसई के दोहे देखने में तो छोटे लगते हैं किन्तु नाविक के तीर के समान वे गम्भीर घाव करते हैं ।। सूक्तियों की सतसई के दोहों के साथ तुलना करने से ज्ञात होता हैं कि सूक्तियां सतसई के दोहों की अपेक्षा अधिक छोटी और अधिक अर्थ-गाम्भीर्य लिये हुए होती हैं। अल्पकाय होने से यदि हम यह कहें कि वे सूत्ररूप में होती हैं तो अनुचित नहीं होगा। सूत्र के रूप में होते हुए भी उनमें अर्थ-गाम्भीर्य वैसा ही दिखाई देता है जैसा कि तत्वार्थसूत्र के सूत्रों में, इस कथन में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
सूक्तियों में लोक-हितेषी भावनाएं दिखाई देती हैं । लगता है विशिष्ट अनुभव, चिन्तन और मनन के उपरान्त ही उनका कथन किया जाता है। वे किसी घटनाविशेष या कथन के निष्कर्षरूप में कही जाती हैं। उनमें शाश्वत् सत्य उद्घाटित किये जाते हैं। संक्षेप में होना उनका विशिष्ट गुण है । सूक्तियों से नवचेतना जागृत होती है, अस्थिरता स्थिरता में परिणत हो जाती है। - सूक्ति शब्द की शाब्दिक व्युत्पत्ति से भी यही प्रतिफलित होता है । सूक्ति=सु+उक्ति से निर्मित है । सु का अर्थ है सुष्ठु/अच्छा और उक्ति का अर्थ है कथन । इस प्रकार सूक्ति, इस व्युत्पत्ति के अनुसार, वह है जिसे अच्छा कथन कहा जा सके और अच्छा कथन वही कहा