________________
जैनविद्या
इस पर नागकुमार ने कहाता मयणेण भरिणउ मणहारिणि, देहि समरि समरहो सुहकारिणी।
5.13.6 "उस मनोहारिणी व सुखकारिणी शबरी को उसके पति शबर को दे दो।" असुर ने तुरन्त शबरी को उसके पति को समर्पित कर दिया ।
(स) शबर ने नागकुमार को रम्यकवन की सीमा पर छोड़ दिया। वहां उसकी भेंट गिरिशिखर नामक नगर के वनराज से हुई। एक दिन नागकुमार ने श्रुतिधर प्राचार्य के दर्शन किये । नागकुमार ने आचार्य से पूछा-8 क्या वनराज किरात है ? कोई क्षत्रिय राजा नहीं ? क्या कहीं राजा भी वन में निवास करते हैं ? यह भ्रांति मेरे मन में बनी हुई है, मिटती नहीं । तब प्राचार्य ने कहा कि पुण्डवर्धन नामक नगर में अपराजित नामक राजा था । उसकी दो पटरानियां थीं सत्यवती और वसुन्धरा । सत्यवती का पुत्र अतिबल था और वसुन्धरा का पुत्र भीमबल था। अपराजित राज्य छोड़कर ऋषि हो गया । लोभ के वशीभूत होकर भीमबल ने अतिबल का राज्य छीन लिया । अतिबल अपनी सेना सहित वहां से निकल पड़ा और उसी ने यह नगर बसाया है। प्राचार्य ने कहा कि भीमबल का पौत्र, सोमप्रभ पुण्ड्रवर्धन में राज्य कर रहा है और अतिबल का पौत्र वनराज है । यह सुनकर नागकुमार ने वनराज के प्रति हुए अन्याय को सोचा और उसने अपने सहयोगी व्यालभट्ट से इस अन्याय को मिटाने के लिए कहा । व्यालभट्ट के साथ युद्ध हुआ। सोमप्रभ परास्त हुआ । वनराज पुण्ड्रवर्धन का राजा बना।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पुष्पदंत ने मानवीय मूल्यों का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया है । नागकुमार का यह कथन 'मैं उसी नृपत्व और जगतभर में यशकीर्तन को सार्थक समझता हूं जिसके द्वारा दीन का उद्धार किया जाय ।" हम सभी के लिए मार्गदर्शक हो सकता है।
मणमि रायत्तण जगजसकित्तणुं जेरण वीण उद्यारियउ।
.
8.13
1. णायकुमारचरिउ, 6.10, सं० डा० हीरालाल जैन, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ । 2. णायकुमारचरिउ. 3.14.15 3. वही, 3.15 4. वही, 3.4 5. वही, 4.15 6. वही, 5.2 . 7. वही, 5.12 8. वही, 6.11
-(*)