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जनविद्या
3. जिन-मन्दिर में राजा जयन्धर कृत जिनेन्द्र की स्तुति (8.11)।
4. तोयावलि में नागकुमारकृत जिनेन्द्र की स्तुति (8.11)। जिनेन्द्र भगवान् के अतिरिक्त, मुनियों की भी स्तुति करने की परम्परा है। "णायकुमार-चरिउ" में मुनि सुव्रत की जितशत्रु कृत स्तुति पठनीय है (6.3)। ' (9) वर्शन और वन्दना करना, भक्ति की अभिव्यक्ति
पुष्पदंत ने "णायकुमार-चरिउ" में दिखाया है कि किस प्रकार अनेक नर-नारी पात्र जिनेन्द्र के तथा मुनियों के दर्शन के लिए जाते हैं और उनकी भक्तिपूर्वक वन्दना करते हैं । कवि ने प्रथम संधि में बताया है कि भगवान् महावीर के विपुलाचल पधारने का समाचार सुनते ही राजा श्रेणिक धर्मानुराग से पुलकित होकर (धम्माणुरायकण्टइयकार) उनके दर्शन के लिए दौड़े और किस प्रकार नगर-निवासी स्त्री-पुरुष पूजन की सामग्री लेकर चल पड़े । भक्ति-भाव का कैसा अद्भुत प्रभाव हुअा, देखिये । कवि कहता है-किसी स्त्री ने अपनी बढ़ती हुई भोग-विलास की अभिलाषा का मर्दन करके अपने लिए लाये हुए आभरणों का अनादर किया, तो कोई कुंकुम न लगाते हुए नूपुरों को धारण न करके ही चल पड़ी। किसी ने संसार के परिभ्रमण के अन्त अर्थात् मोक्ष का ध्यान करते हुए पास ही चक्कर काटते रहनेवाले प्रिय पति की भी उपेक्षा की।
इस काव्य में कवि ने अनेक स्थलों पर जिन-मन्दिर में गमन, जिनेन्द्र-पूजन, मुनियों की वन्दना आदि का उल्लेख किया है । उदाहरणार्थ-त्रिभुवन-तिलक में नागकुमार द्वारा मुनि पिहिताश्रव की वन्दना करना (9.4), नागदत्त कृत महामुनि मनगुप्त की वन्दना (9.16), ऊर्जयन्त पर्वत पर नागकुमार द्वारा तीर्थंकरों के चरण-चिह्नों को नमस्कार करना (7.10), नागकुमार द्वारा स्फटिक शिला पर विराजमान श्रुतिधन नामक परम प्राचार्य के दर्शन करके उनकी वन्दना करना (6.10), नांगकुमार द्वारा भगवान् चन्द्रप्रभ के मन्दिर में जाकर उनके प्रतिबिम्ब का दर्शन करना, उनकी प्रतिमा का अभिषेक और पूजन करके वन्दना करना (5.11) इत्यादि।
इसमें ध्यान देने योग्य बात यह है कि. यहाँ पर कोई भी व्यक्ति भक्ति के फलस्वरूप सांसारिक जय, समृद्धि, सुख, स्व-शत्रु का नाश आदि की उपलब्धि की कामना नहीं करता । उदाहरण के लिए पृथ्वीदेवी जिनेन्द्र भगवान् से अभ्यर्थना करती है-इसी मोक्खगामी। तुम मम सामी ।। फुर बेहि बोही। बिसुद्धा समाही ॥ आप मुझे स्पष्ट बोधिज्ञान और विशुद्ध समाधि प्रदान करें। जिन-मन्दिर पहुंचने पर उसके विषाद और सौतिया डाह का विनाश ही हुमा । उसी प्रकार, नागकुमार ने चन्द्रप्रभ भगवान् का पूजन करने पर ग्लानि के साथ संसार की असारता को अनुभव किया। (10) उपदेश
पुष्पदंतकृत "णायकुमार-चरिउ" में जैन दृष्टिकोण से अनुप्राणित धर्म, नीति और आचरण सम्बन्धी उपदेश प्रचुर मात्रा में प्रस्तुत हुआ है। उदाहरण के लिए देखिये-मुनि