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________________ 96 जनविद्याः धन-वैभव के अतिरिक्त विद्या को भी धन माना गया है। विद्याधन अन्य सभी धनों में श्रेष्ठ माना गया है। कवि काव्य में ज्ञानरूपी लक्ष्मी उल्लिखित है ।12 लक्ष्मी का एक नाम चंचला भी है। वस्तुत: इसमें स्वभावतः- चांचल्य होता है। इसी प्रवृत्ति के कारण पुष्पदन्त ने लक्ष्मी को एक स्थान पर.. कभी- न स्थिर रहनेवाली13 तथा स्वेच्छाचारिणी14 बताया है। कविसमय की प्रेरक भावना का अभीष्ट प्रायः आदर्शात्मक रहता है। सुन्दर वस्तु को भी सुन्दरतम बनाना ही उसका अभिप्रेत है। महाकवि पुष्पदन्त इस ईप्सा की सिद्धि के शिखर पर हैं। 1. हलायुध कोश, सम्पा० जयशंकर जोशी, हिन्दी समिति सूचना विभाग, उ०प्र० लखनऊ, द्वि० स० सन् 1967, पृष्ठ 693 । 2. कविसमय-मीमांसा, विष्णुस्वरूप, काशी विश्वविद्यालय, वाराणसी, प्र०सं० 1963 पृष्ठ 220 । ..... 3... अमरकोश, अमरसिंह, जयकृष्णदास, हरिदास गुप्त, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, र सम्वत् 1944. पृष्ठ 12 । ... .... ...... 4. ब्रज के लोक व्रतानुष्ठान, डॉ० सत्येन्द्र, भारतीय साहित्य, सम्पा० विश्वनाथप्रसाद, :: क०-मु० हिन्दी तथा भाषा विज्ञान विद्यापीठ, प्रागरा वि० वि०, आगरा, वर्ष 5, - अंक 4, अक्टूबर 1960, पृष्ठ 277-78 । . .. 5. काव्य मीमांसा, प्राचार्य राजशेखर, अनुवादक-केदारनाथ सारस्वत, बिहार राष्ट्रभाषा. ... परिषद पटना, प्रथम संस्करण सम्वत् 2011, अध्याय 16, पृष्ठ 212-14। 6. णायकुमारचरिउ, पुष्पदन्त, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, द्वि० संस्करण 1972 ई०, संधि 1, पृष्ठ 2 7. वही, पृष्ठ 2। - - - 8. महापुराण, भाग 2, पुष्पदन्त, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई-दिल्ली, प्रथम संस्करण ... 1979 ई०, संधि 22, पृष्ठ 84 । -... 9. महापुराण, भाग 1, संधि 2, पृष्ठ 36 । . 10. महापुराण, भाग 1, संधि 5, पृष्ठ 104 । 11. महापुराण, भाग 1, संधि 2, पृष्ठ 52। । 12. महापुराण, भाग 3, संधि 40, पृष्ठ 42। 13. महापुराण, भाग 3, संधि 50, पृष्ठ 192 । ..... .. . 14: महापुराण, आग 1, संधि 16, पृष्ठ 370 ।: :--
SR No.524753
Book TitleJain Vidya 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages120
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size11 MB
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