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जैन विद्या
कर देते हैं तब कनिष्ठ पुत्र प्रजितंजय ही मिथिला का राज्य संभालता है और राम दीक्षा धारण कर लेते हैं । ये सब तथ्य समानरूप से दृष्टिगोचर होते हैं । परन्तु दोनों कथानकों में राम की दीक्षा के पश्चात् मुनिदशा - काल को लेकर कुछ भिन्नता है । पुष्पदंत ने मुनिदशा की स्थिति 345 वर्ष व केवलज्ञान के बाद की स्थिति 650 वर्ष बताई है जबकि गुणभद्र ने क्रमश: 395 व 600 वर्ष का समय बताया है फिर भी दीक्षा के पश्चात् श्रायु समाप्ति तक के वर्षों का योग दोनों में समान ( 995 वर्ष) ही है। राम व हनुमान् केवलज्ञान प्राप्त कर सम्मेदशिखर से सिद्ध पद प्राप्त करते हैं (यहाँ ध्यातव्य है कि पुष्पदंत व गुणभद्र दोनों ने ही राम का निर्वाण सम्मेदशिखर पर्वत से बताया है, जबकि निर्वाणकाण्ड पाठ, जो कि प्राकृतभाषी प्राचीन गाथाबद्ध कविता है, में उल्लेख है कि तुंगगिरि से राम मोक्ष गए) । सीता व पृथ्वीसुन्दरी देवगति प्राप्त करती हैं ।
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इस प्रकार कुछ सामान्य तथ्यात्मक भिन्नताओं के अतिरिक्त दोनों महापुराणों की रामकथा में प्राय: समानता है। दोनों कथानक समानान्तर रूप से विकसित हुए हैं । यदि हम इन्हें भाषात्मक रूपान्तर कहें तो वह भी उचित होगा । कहीं-कहीं तो उपमा - सादृश्य भी दृष्टिगत होता है । यथा- जब नारद सीता के प्रति रावण को श्रासक्त करता हुआ कहता है कि – सीता सर्वथा आपके ही योग्य है क्योंकि गंगा सदैव समुद्र के ही योग्य होती है नदी-नालों के नहीं (गुणभद्र कृत- म. पु. 68. 103, पुष्पदंत कृत- म. पु. 71.2) 18 एक का प्रभाव दूसरे पर स्पष्ट परिलक्षित है पर कौन प्रभावित है और कौन प्रभावक यह जानने के लिए दोनों के कालक्रम के अनुसार पूर्वापरत्व का विचार करने पर यह स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि कवि पुष्पदंत पर प्राचार्य गुणभद्र का प्रभाव है क्योंकि गुणभद्र पुष्पदंत के पूर्ववर्ती हैं। गुणभद्र का समय 9वीं शताब्दी तथा पुष्पदंत का 10वीं शताब्दी है, दोनों एक ही धारा के पोषक हैं ।
जैन वाङमय में रामकथा विषयक एक और धारा प्राचार्य विमलसूरि की है यहीं सर्वाधिक प्रचलित भी है जिसका अनुकरण प्राचार्य रविषेण ने किया है । यहाँ दोनों धाराओं में व्याप्त समानता असमानता, नवीनता - मौलिकता देखने के लिए इस धारा की जानकारी भी प्रासंगिक होगी अतः रविषेण के पद्मपुराण का प्रतिसंक्षिप्त कथा-सार प्रस्तुत है -
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राक्षसवंशी राजा रत्नश्रवा के रावण, कुम्भकर्ण व विभीषण नाम के तीन पुत्र तथा चन्द्रनखा नाम की एक पुत्री थी। उसी काल में इक्ष्वाकुवंशी राजा दशरथ अयोध्या में राज्य करते थे और राजा जनक मिथिला में । एक दिन रावण को ज्ञात हुआ कि राजा जनक व राजा दशरथ की सन्तानें उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी । सन्तानों की सम्भावना ही न रहे इस विचार से रावण ने राजा जनक व राजा दशरथ की हत्या कराने का प्रयत्न किया इसके लिए इन्होंने विभीषण को भेजा, परन्तु नारद ने दोनों राजाओं को इसकी पूर्व सूचना दे दी जिससे सतर्क होकर दोनों ने अपनी कृत्रिम प्रकृतियाँ बनवा कर अपने शयनकक्ष में रखवा दीं । विभीषण ने उन प्राकृतियों को ही राजा समझा और दोनों के मस्तक काट दिये ।
राजा दशरथ के चार रानियाँ थीं । अपराजिता ( कौशल्या), सुमित्रा, केकयी व सुप्रभा जिनसे क्रमशः राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ । विवाह के समय ही