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जैनविद्या
3. प्रो० जगन्नाथ शर्मा, अपभ्रंश दर्पण, पृष्ठ 25 4. डॉ० रामसिंह तोमर, जैन अपभ्रंश साहित्य की हिन्दी साहित्य को देन, प्रेमी
अभिनन्दन ग्रंथ, पृष्ठ 468 5. भ्रमरगीत सार, पं० रामचन्द्र शुक्ल सम्पादित, द्वितीय संस्करण, काशी, भूमिका,
पृष्ठ 2 6. मझु कइत्तुगु जिणपयभत्तिहे, पसरइ णइ जिणजीवियवित्तिहें-पुष्पदंत, उत्तर
पुराण। 7. भूधरदास, पार्श्वपुराण, बम्बई, द्वि० वृ०, वि० सं० 1975, 5/80-88, पृष्ठ 83-84 8. पुष्पदंत, णायकुमारचरिउ, डा० हीरालाल जैन सम्पादित, भारतीय ज्ञानपीठ,
वि० सं० 2029, द्वितीयावृत्ति । 9. णायकुमारचरिउ, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, द्वितीयावृत्ति 2.7.5, पृष्ठ 26 10. वही, 2.8.10. पृष्ठ 28 11. वही, 2.8.11, पृष्ठ 28 12. वही, 2.9.10, पृष्ठ 28 13. णायकुमारचरिउ, 2.12.10, पृष्ठ 32
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......""जहिं अहिंस तहिं धम्मु गिरत्तउ । जहिं अरहंतदेउ तहि संयमहु, जहिं मुणिवरु तहिं इंदियरिणग्गहु ॥ अर्थ - जहाँ अहिंसा है वहाँ निश्चय से धर्म है ।
जहाँ अरहन्तदेव हैं वहां संयम है और जहाँ मुनिवर हैं वहाँ इन्द्रियनिग्रह है।
- म. पु. 28. 21. 9-10