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________________ जैनविद्या कावि कुकुसुमई यिदंतहि, जोयइ दप्परिंग समउ फुरंतहि । बलु परिक्खइ गितणुगंधें, बिबीहलु प्रहरहु संबंधें । कवि फुल्लिउ साहारु गिरिखखइ, बाली हरिसाहारणु कंखई । जंपमाणु कलियइ मत्तउ, खरसंताउ ग मुराइ सइत्तउ । धरिउ ताइ रूसिवि मरणदूसउ, श्रग्गिवण्णु जायउ मुहि पूसउ । । पुष्पदंत का बिब विधान में न कहीं जोड़ है और न तोड़ पूर्ण लय है । चित्रांकन के रंग हैं । स्थापत्य का निदर्शन है और सभी संश्लिष्ट, सभी संप्रेषणीय । 1. वर्ल्ड व् इमेजरी - स्टीफेन जे० ब्राउन, पृष्ठ 1-2 2. पॉयटिक इमेज - सी. डे. व्युस, पृष्ठ 22 63 म० 71.15 1-5 वर्णन और दर्शन की मूर्तिकला की बारीकी । 3. काव्य प्रकाश - 1/3, का. 4. लोचन - काव्य दर्पण - पृष्ठ 41 ( पा० दि०) 5. रस गंगाधर - वि०स० भा०, पृष्ठ 25 6. लिटरेरी इमेज - प्रव् एजरा पाउंड, पृष्ठ 10 7. हिन्दी ध्वन्यालोक - 2 / 16, पृष्ठ 145-47, एस्थेटिक प्र० 9 8. हिन्दी वक्रोक्ति जीवित - 1 / 10, पृष्ठ 51 9. दिनकर - एक पुनर्मूल्यांकन, विजेन्द्र नारायण सिंह, इलाहाबाद, सन् 65, पृष्ठ 10
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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