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________________ जैनविद्या हदिति प्रत्थइरिसाणु, संपत्तउ लहु श्रत्थमिउ भाणु । गरतिरियरणयरणपसरण हरंतु, चक्कउलहं तणुतावणु करंतु । णं दिसइ लइउ रइरस रिहाउ णं णिण्णट्ठउ रावणपयाउ । णं रद्द समुद्दे रयरणसंगु णं महिइ गिलिउ रहरहरहंगु । देउ वि वारुणिसंगेर पडइ, णं इयभणंतु पक्खिउलु रडइ । गच्छन्तु अहोमुहु तिमिरमंथु णं दावइ गरयहु तर उ पंथ । कालें कवलिउ महिश्रद्धराउ, णं हित्तउ कामिरिगरइ गिहाउ । णं गासिउ बंधवसोक्खहेउ, अच्छोडिउ णं रहुवंसकेउ । णं मोडि सुरतरुवरु फलंतु, उल्हविउ पायावारणलु जलंतु । रिउसीसरिगवे सियपायपंसु, उड्डा विउ जगसर रायहंसु । ऐसे ही "केशकीवृत्ति" एवं " वैदर्भी रीति" गर्भित तथा " श्लेषादि गुण" से युक्त वैविध्यपूर्ण चित्र का उद्घाटन तब हुआ है, जब उसके प्रसिद्ध पात्र के निधन की घटना का वर्णन प्रस्तुत हुआ है - 57 म. 79.11 6-9 सा तुज्भु जि जोग्गी लयललियंगी हिप्पइ मड्डइ किंकरहं । सुरसरि समुद्बहु होइ समुद्दहु गउ जम्मि वि पंकयस रहं । . 73.1. 3-8 आलोच्य ग्रंथ में "प्रसाद गुण" और " वक्तृ औचित्य" से विशिष्ट 'वैधर्म्यमूलक' दृष्टान्त के रूप में एक उत्कृष्ट कल्पनाचित्र का प्रत्यक्ष तब होता है, जब कवि अपने एक पात्र द्वारा न्यस्त राम कथा की बीज अर्थ - प्रकृति से सम्बन्धित घटना के वर्णन में प्रवृत्त होता है - म. 71.2 11-12 गउ श्रत्थवरणहु कंदोट्टजूर, करसहसेण वि रणउ धरिउ सूरु । रिगवडंतु जंतु हेट्ठामुहउ रवि किं एक्कु भरिगज्जइ । जगलच्छी मंदिर रिग्गर्याह मंदह को रक्खज्जइ । ऐसा ही एक " वक्तृ-प्रौचित्य" और "उल्वण रचना" से विशिष्ट अर्थान्तरन्यासविशेष का सामान्य से साधर्म्यपूर्वक समर्थन के रूप में एक उदात्त कल्पना का प्रयोग तब दीख पड़ता है, जब सूर्यास्त संबंधी घटना का विमर्श प्रारम्भ हुआ है - . 73.2. 12-14 जहि अच्छइ रिगयडपरिट्ठियउ अंजरगतगुरुह बालउ । तहि दहमुहु रइसुहु कहि लहइ वम्महु जहि पडिकूलउ । हमारा कवि “पर्यायवक्रता", "अनुरूप्य" और "अनाकुलत्व" से विशिष्ट "काव्यलिंग" के रूप में एक " कवि-प्रौढोक्तिसिद्ध" प्रसन्न चित्र का निर्माण तब करता है, जब वह दो प्रतियोगियों की एकावस्थानरूप घटना के वर्णन में प्रवृत्त होता है - . 73.19. 14-15
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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