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________________ महापुराण की काव्यभाषा - डॉ. श्रीरंजनसूरिदेव "महापुराण" अपभ्रश के महाकवि पुष्पदंत (ईसा की 10वीं शती) द्वारा सौष्ठवपूर्ण काव्यभाषा में रचित महाकाव्य है । जैन धार्मिक साहित्य के प्रथमानुयोग में परिगणित इस महाकाव्य का अपर पर्याय "तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकार" (त्रिषष्टिमहापुरुषगुणालंकार) है। पुष्पदंत ने अपने शुभावतरण से काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण कुल को अलंकृत किया था। उनके पिता का नाम केशवभट्ट और माता का नाम मुग्धादेवी था । वह अपने जीवन के पूर्वार्द्ध में शैव थे और उत्तरार्द्ध में आकर दिगम्बर जैन हो गये । मान्यखेट (वर्तमान आन्ध्रप्रदेश के हैदराबाद राज्य का मलखेड़) के राजा भरत के आश्रय में रहकर उन्होंने “महापुराण" की रचना की और फिर राजा भरत के पुत्र युवराज नन्न के आश्रय में “णायकुमारचरिउ" तथा "जसंहरचरिउ" जैसे कालजयी अपभ्रंश-खण्डकाव्यों का प्रणयन किया। निर्धन होकर भी वे कवित्वाभिमान के धनी थे इसलिए उन्होंने अपने को “काव्य पिशाच", "अभिमान मेरु", "कविकुलतिलक", "काव्यरत्नाकर", "सरस्वतीनिलय" आदि चित्र-विचित्र उपाधियों से विमण्डित किया है। मगधराज श्रेणिक (बिम्बसार) के अनुरोध पर भगवान् महावीर के प्रमुख गणधर गौतमस्वामी ने “महापुराण", यानी प्राचीनकाल की महती कथा प्रस्तुत की थी। पुराण में एक ही धर्मपुरुष या महापुरुष का वर्णन होता है और महापुराण में अनेक महापुरुषों का । महाकवि पुष्पदंत ने अपने इस “महापुराण" में तिरसठ (चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव और नौ बलदेव) शलाका पुरुषों या महापुरुषों के चरित्रों का वर्णन किया है इसलिए उन्होंने इसे "तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकार" नाम से भी अभिहित किया है। पुष्पदंत के अतिरिक्त, उनके पूर्ववर्ती जिनसेन द्वितीय (नवीं शती) ने
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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