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________________ महाकवि पुष्पदंतः व्यक्तित्व और कर्तृत्व - डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति' अपभ्रंश के प्रसिद्ध कवियों में पुष्पदन्त का स्थान प्रमुख है। विख्यात विद्वान् डॉ० राहुल सांकृत्यायन द्वारा सम्पादित 'हिन्दी काव्यधारा' नामक अपभ्रश काव्यों के संकलन में महाकवि स्वयंभू के बाद राहुलजी ने दूसरा स्थान राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज तृतीय (सं० 996-1025) के मंत्री भरत एवं नन्न के आश्रित अपभ्रंश कवि पुष्पदन्त को दिया है। महाकवि पुष्पदन्त कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। आपके पिता का नाम केशव भट्ट और मातुश्री का नाम मुग्धा देवी था । आरम्भ में कविश्री शैव मतावलम्बी थे और उन्होंने भैरव नामक किसी शैव राजा की प्रशंसा में काव्य का प्रणयन भी किया था। बाद में अपभ्रंश कवि पुष्पदन्त किसी जैन मुनि के उपदेश से जैन हो गये और मान्यखेट में आकर मंत्री भरत के अनुरोध से जिनभक्ति से प्रेरित होकर काव्य-सर्जन में प्रवृत्त हुए। बरार निवासी पुष्पदन्त ने संन्यास विधि से मरण किया । महाकवि पुष्पदन्त अत्यन्त स्वाभिमानी थे। पुष्पदन्त का घरेलू नाम खण्ड या खण्डू था। 'खण्डूजी' नाम महाराष्ट्र में अब भी प्रचलन में है। आपका स्वभाव उग्र और स्पष्टवादी था। भरत और बाहुबली के कथा-संदर्भ में आपने राजा को लुटेरा और चोर तक कह दिया है।' कवि के उपाधिनाम अभिमानमेरु, अभिमानचिह्न , काव्यरत्नाकर'०, कविकुलतिलक11, सरस्वती-निलय और कव्व-पिसल्ल18 अर्थात् काव्यपिशाच या काव्य-राक्षस थे। 'कव्वपिसल्ल' पदवी बड़ी अद्भुत है । यह कवि के मौजी और फक्कड़ स्वभाव का प्रतीक है। कवि प्रकृति से अक्खड़ और नि:संग थे। उन्हें सांसारिक वस्तु की आकांक्षा नहीं थी। वह मात्र निःस्वार्थ प्रेम के अभिलाषी थे ।14 ....
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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