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इस अंक में भी "पाणंदा" शीर्षक से एक प्राध्यात्मिक रचना सानुबाद प्रकाशित की जा रही है। वैसे यह रचना भिक्षु स्मृति ग्रंथ के द्वितीय खण्ड में मूलरूप में तो प्रकाशित हो चुकी है किन्तु उसका अनुवाद प्रकाशित हुआ हो ऐसा हमारी जानकारी में नहीं है । रचना के मूलरूप का संशोधन भी तीन प्रतियों के आधार से हुआ है और साथ में पाठभेद भी दे दिये हैं जिससे उसकी महत्ता और उपयोगिता और भी बढ़ गई है।
हमारी घोषित नीति के अनुसार रचनाएं प्रायः मूलरूप में ही प्रकाशित की जा रही हैं अतः स्वभावतः उनमें प्रकाशित तथ्यों, विचारों आदि के लिए स्वयं लेखक ही उत्तरदायी हैं।
पुष्पदंत के पश्चात् हमारा विचार अपभ्रंश भाषा के ही कवि धनपाल एवं धवल पर सामग्री प्रस्तुत करने का है। विद्वानों, चिन्तकों एवं मनीषियों से अनुरोध है कि वे इस विषय पर न केवल अपनी मौलिक रचनाएं ही हमें भेजें अपितु, दूसरों को भी इस हेतु प्रेरित कर हमारा सहयोग करें। सामग्री जितनी शीघ्र हमें प्राप्त होगी उतनी ही शीघ्र हम उसे पाठकों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे।
: हम पुनः सूचित कर रहे हैं कि समीक्षार्थ नवीन प्रकाशनों की तीन प्रतियां प्राप्त होने पर पत्रिका में उनकी समीक्षा प्रकाशित हो सकेगी।
इस कार्य में जिन विद्वान् रचनाकारों, सहयोगी सम्पादकों तथा सम्पादक-मण्डल के सदस्यों और मुद्रकों आदि का सहयोग हमें प्राप्त हुआ है उसके लिए हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं।
- (प्रो०) प्रवीणचन्द्र जैन . प्रधान सम्पादक