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________________ जैनविद्या 107 आणंदा - श्री महानंदिदेव [जैसा कि हमने जैनविद्या के पूर्व अंक में सूचित किया था पत्रिका के प्रत्येक अंक में प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी श्रादि भाषाओं की अप्रकाशित महत्त्वपूर्ण रचनाओं में से एक रचना सानुवाद प्रकाशित करने का प्रयत्न करेंगे । गत अंक में प्रकाशित 'चूनड़िया' शीर्षक लगभग 800 वर्ष प्राचीन रचना हमारे इस संकल्प की पूर्ति हेतु प्रारम्भिक कड़ी थी। हमें प्रसन्नता है कि हमारे इस प्रयास का पाठकों ने सोत्साह स्वागत किया । उससे उत्साहित होकर इस अंक में अपभ्रंश भाषा की ही महानंदि कृत 'प्रानन्दतिलक' नामक एक अन्य रचना प्रकाशित कर रहे हैं । रचना अध्यात्म से परिपूर्ण है और कम से कम छह सौ वर्ष से अधिक की प्राचीन है । इसके बहुत से दोहों की तुलना प्रसिद्ध रहस्यवादी कवि कबीर के दोहों से की जा सकती है । रचना का सम्पादन एवं अनुवाद अपभ्रंश भाषा एवं जैनदर्शन के प्रसिद्ध मूर्द्धन्य विद्वान् डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्री, नीमच ने किया है । उन्होंने संस्थान की दो प्रतियों एवं अभय जैन ग्रन्थमाला, बीकानेर से प्रकाशित 'आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रन्थ' में मुद्रित प्रतियों का आधार लेकर रचना का पाठ तैयार किया है । पाठक संस्थान की प्रतियों के मूल पाठ से परिचित हो सकें एतदर्थं दोनों प्रतियों के पाठ भेद संस्थान में पं० भँवरलाल पोल्याका, जैनदर्शनाचार्य, सा० शास्त्री से तैयार कराये जाकर इसके साथ जोड़ दिये गये हैं ।
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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