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________________ 106 6. जैन मन्दिर दबलाना, बूंदी 1. पत्र संख्या 63। वे संख्या 5 | 7. भट्टारकीय भंडार, नागौर 1. पत्र संख्या 57 । ले. काल सम्वत् 1694 | 2. पत्र संख्या 68 । ले. काल सम्वत् 1521 । 3. पत्र संख्या 59 । ले. काल सम्वत् 1574 4. पत्र संख्या 74 | ले. काल सम्वत् 1487 । 5. पत्र संख्या 59 । ले. काल सम्वत् 1621 । 6. पत्र संख्या 80 | ले. काल सम्वत् 1589 । 7. पत्र संख्या 71 । ले. काल सम्वत् 1651 । 8. पत्र संख्या 74 | ग्रंथ संख्या 1401 हयतिमिरणिय वरकर रिहाणु, ग सुहाइ उलूयहो उहउ भाणु । जैन विद्या अर्थ – उल्लू को अंधकारसमूह का नाश करनेवाला तथा श्रेष्ठ किरणों का निधान ऐसा उगता हुआ सूर्य अच्छा नहीं लगता । - महापुराण 1.8.5
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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