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________________ 104 जनविद्या 8. पत्र संख्या 325 । ले. काल सम्वत् 1630, भादवा सुदि 10 । वे. सं. 53 । बाबा दुलीचंद भंडार, जयपुर । 2. पार्श्वनाथ मंदिर, जयपुर 1. पत्र संख्या 295 । ले. काल सम्वत् 1719 । वे. सं. 293 । 3. भट्टा० जैन मन्दिर, अजमेर ____ 1. पत्र संख्या 234 । ले. काल सम्वत् 1631 । वे. सं. 131 । 4. मंदिर गेलियान, जयपुर 1. पत्र संख्या 276 । ले. काल सम्वत् 1543, प्रासोज सुदी 9। उत्तरपुराण- इसकी भी प्राचीन प्रतियाँ राजस्थान के निम्न भंडारों में सुरक्षित हैं - 1. तेरहपंथी मन्दिर, दौसा 1. पत्र संख्या 325 । ले. काल सम्वत् 1538, कार्तिक सुदि 13 । वे. सं. 112। 2. तेरहपंथी बड़ा मन्दिर, जयपुर 1. पत्र संख्या 493 । ले. काल सम्वत् 1641 । वे. संख्या 157 । 2. पत्र संख्या 423 । ले. काल सम्वत् 1615 । वे. संख्या 1379 । 3. मन्दिर बधीचंदजो दीवान, जयपुर 1. पत्र संख्या 324-838 । ले. काल सम्वत् 1557 । वे. संख्या 1171 4. भट्टारकीय ग्रंथ भंडार, नागौर 1. पत्र संख्या 263 । ले. काल सम्वत् 1482 । ग्रंथ संख्या 1041। 2. पत्र संख्या 31 । ले. काल सम्बत् 1658, कार्तिक सुदि 15 । ग्रंथ संख्या 1161 । गायकुमार (नागकुमार) चरिउ- नौ संधियों के इस सुन्दर काव्य में पंचमी के उपवास के फल का वर्णन है । यह काव्य काफी लोकप्रिय रहा है । इसकी प्रतियां निम्न स्थानों पर हैं - 1. मंदिर दीवान बधीचंदजी, जयपुर 1. पत्र संख्या 19 । ले. काल सम्वत् 1517, वैशाख शुक्ला 5 । वे. संख्या 212 । 2. पत्र संख्या 60 । ले. काल सम्वत् 1528 । वे. संख्या 234 । 3. पत्र संख्या 49 । ले. काल सम्वत् 1558 । वे. संख्या 866 । 4. पत्र संख्या 69 । ले. काल सम्वत् 1554, भाद्रपद शुक्ला 3 । वे. संख्या 867 ।
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
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