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________________ 53. ज्ञानार्णव श्लोक 1934 अकारादि हकारान्त, रेफमध्यं सबिन्दुकम् । तदेव परम तत्वं, यो जानाति स तत्ववित् ।। 54. नमस्कार स्वाध्याय (संस्कृत विभाग), पृ. 106, श्लोक 450 ध्यायन् सूरिः सकलागमार्थवक्ता गतभ्रान्तिः।। 55. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण), पृ. 91 56. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण), पृ. 103 57. मंत्र और मातृकाओं का रहस्य, पृ. 111 58. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण), पृ. 93 59. मंत्र और मातृकाओं का रहस्य, पृ. 118 60. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण), पृ. 87, श्लोक-17, 18 आदिमपंचमषष्ठ द्वादशमुख पंचदशकपर्यन्ताः। पुल्लिंगा स्त्रीलिंगो द्वितीयतुर्यस्वरौ स्याताम् ।। सप्तम कलादिरूद्र प्रमाणपर्यन्त सकलान्तकलाः । त्रिकलापि सप्त षटषष्ठा इत्युक्ता मन्त्रवादेऽत्र ।। 61. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण), पृ. 103 62. मंत्र और मातृकाओं का रहस्य, पृ. 112 63. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण), पृ. 101 अंगजवश्य। अः मृत्युनाशनं। 64. केवलज्ञान चूड़ामणि पृ. 85 अ आ इ ए ओ अः इत्येते जीवस्वशः षट्। उ ऊ अं इति त्रयः स्वशः, त थ द ध, प, फ व भ, व सा इति त्रयोदशाक्षराणि धात्वक्षराणि। भवन्ति । 54 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 140 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524636
Book TitleTulsi Prajna 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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