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________________ 41. अक्षराणामकारोऽस्मि, भगवद्गीता 10/33 42. मंत्र और मातृकाओं का रहस्य-पृ. 270 नान्दिकेश्वर काशिका-श्लोक-3, अकारो ब्रह्मरूपः स्यान्निर्गुणः सर्ववस्तुषु।। 43. मंत्र और मातृकाओं का रहस्य-पृ. 270 नान्दिकेश्वर काशिका-श्लोक-1 अकारः सर्ववर्णाग्रंथः प्रकाशः परमेश्वरः। आद्यमन्त्येन संयोगादहमित्येव जायते।। 44. नमस्कार स्वाध्याय (संस्कृत विभाग) पृ. 22, श्लोक-6 सर्वात्मानं (सर्वात्मक) सर्वगत सर्वव्यापि सनातनम् । सर्वसत्वाश्रितं दिव्यं, चिन्तितं पापनाशनम् ।। 45. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण) पृ. 212 46. पंचपरमेष्ठी मंत्रराज ध्यान माला, पृ. 153 47. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण), पृ. 161 48. वही, पृ. 154 49. वही, पृ. 164 50. नमस्कार स्वाध्याय (संस्कृत विभाग), पृ. 38 अर्हमित्यक्षरं ब्रह्म, वाचकं परमेष्ठिनः। 51. योगशास्त्र (गुजराती संस्करण) पृ. 153 52. ज्ञानार्णव-श्लोक 1911 से 1915 तक ध्येयेदनादि सिद्धांत प्रसिद्धां वर्णमातृकाम् । निःशेषशब्दविन्यासजन्मभूमिं जगन्नताम् ।।1911।। द्विगुणाष्ट-दलाम्भोजे, नाभिमण्डल-वर्तिनि ।. भ्रमन्तीं चिन्तयेद् ध्यानी, प्रतिपत्रं स्वरावलीम् ।।1912।। चतुर्विंशतिपत्राढ्यं हदि कर्ज सकर्णिकम् । तत्र वर्णानिमान् ध्यायेत्, संयमी पंचविशतिम्।।1913।। ततो वदनराजीवे पत्राष्टकविभूषिते। परं वर्णाष्टकं ध्यायेत् संचरन्तं प्रदक्षिणम् ।। 1914।। इत्यजस्त्रं स्मरन्योगी, प्रसिद्धां वर्णमातृकाम्। श्रुतज्ञानाम्बुधेः पारं, प्रयाति विगतभ्रमः ।।1915।। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 - 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524636
Book TitleTulsi Prajna 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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