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________________ क. नाभरूपरि आक्रामन् विवक्षाप्रेरितो मरूत् । हृदाद्यन्यतमस्थाने, प्रयत्नेन विधार्यते॥ विद्यार्यमाणःस स्थान-ममिहन्ति ततः परम्। ध्वनिरूत्पद्यते सोऽयं, वर्णस्यात्मा वितर्कितः।। 34. क. ज्ञानावर्ण-35/108, 109 स्मर मंत्रपदाधीशं, मुक्तिमार्गप्रदीपकम्, नाभि पंकजसंलीनमवर्ण विश्वतोमुखम् । सि वर्णं मस्तकाम्भोजे साकारं मुखपंकजे, आकारं कण्ठकंजस्थं, स्मरोंकारं हृदि स्थिरम् ।। ख. तत्त्वार्थ सारदीपक-श्लोक 138 से 140 तक 35. परमेष्ठी विद्या मंत्र कल्प-श्लोक 47 ___ मंत्राधीशः पूज्यै रूक्तौईसो किंतु देहरक्षायै । शीर्ष-मुख-कण्ठ-हृत् पदक्रमेणं 'अ सि आ उ साः' स्थाप्या ।। 36. परमेष्ठी विद्या यंत्रकल्प-श्लोक 45, 46 ___ गुरू पच्चक नामद्यमेकैककमक्षरं तथा नामौ मूर्ध्नि मुखे कण्ठे हृदि स्मर क्रमात्मुने ।। 'अ' वर्ण नाभिपदमान्तः, 'सि' वर्ण तु शिरोऽम्बुजे । 'आ' मुखाब्जे, 'उ' कण्ठे 'सा' कारं हृदये स्मर।। 37. परमेष्ठी विद्या यंत्रकल्प-श्लोक 48 प्रणवः पंचशून्याने, अ सि आ उ सा नमः। अस्याभ्यासादसौ सिद्धिं प्रयाति गतबन्धनः।। 38. नमस्कार स्वाध्याय (संस्कृत विभाग-पृ. 203) अरिहंता असरीरा आयरिया तह उवज्झाया मुणिणो। पढमक्खर निप्पण्णो ऊँकारो पंचपरमेट्ठी ।। 39. नमस्कार स्वाध्याय (संस्कृत विभाग) श्लोक 416 __अः पृथिवी पीतरूचिः उफ्रेम तडित्प्रभामिरा क्रान्तम् । मः स्वर्गः कला चन्द्रप्रभमिन्दुनभस्तत्परं ब्रह्मा ।। 40. नमस्कार स्वाध्याय (संस्कृत विभाग) श्लोक 418 आलोकेनोपलम्भेन, मुनित्वेन च साधितः। रत्नत्रयमयो ध्येयः, प्रणवः सर्वसिद्धये ।। 52 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 140 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524636
Book TitleTulsi Prajna 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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