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________________ षट्जीवनिकाय की अवधारणा : एक विश्लेषण प्रोफेसर सागरमल जैन षट्रजीवनिकाय की अवधारणा जैनों की अपनी विशिष्ट अवधारणा है। इस षट्र जीव निकाय की अवधारणा के अन्तर्गत निम्न छः प्रकार के जीव माने गये हैं(1) पृथ्वीकायिक जीव (2) अप्कायिक जीव (3) तेजस् काायिक जीव (4) वायुकायिक जीव (5) वनस्पतिकायिक जीव और (6) त्रसकायिक जीव। षट्जीवनिकाय के सन्दर्भ में जैन दर्शन में प्राचीनतम उल्लेख आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन उत्तराध्ययन सूत्र के छतीसवें जीवाजीवविभक्ति नामक अध्ययन में, दशवैकालिक सूत्र के चतुर्थ षट्जीव निकाय नामक अध्ययन में मिलते हैं। यद्यपि सबसे प्रथम आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुत स्कन्ध के प्रथम अध्ययन के दूसरे से सातवें के उद्देशकों में इन छः प्रकार के जीवों का निर्देश हुआ है, किन्तु आचारांग सूत्र में एक विशेषता यह हमें देखने को मिलती है कि वहाँ इनके लिए कायिक शब्द का प्रयोग न करके उसके स्थान पर 'सत्थ' शब्द का प्रयोग हुआ है। ‘सत्थ' शब्द का संस्कृत रूप एवं अर्थ शस्त्र होता है। अतः आचारांगसूत्र के निर्देशानुसार ये छः प्रकार के शस्त्र हैं, जिससे स्व काय की और अन्य काय की हिंसा की जाती है। किन्तु जिज्ञासुओं के द्वारा यहाँ यह शंका अवश्य ही उठाई जा सकती है कि उन्हें शस्त्र क्यों कहा गया? यह ठीक है कि जीवित प्राणी भी हिंसा की क्रिया अपने शरीर आदि के माध्यम से करते हैं किन्तु इसके अतिरिक्त अजीव द्रव्य भी हिंसा के साधन बनते ही है अर्थात् अजीव द्रव्य भी शस्त्र रूप में परिणत हो सकते हैं। जिज्ञासुओं के मन में यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न हो सकता है कि यदि आचारांग में पृथ्वी आदि शस्त्र कहे गये हैं तो उससे उनमें जीवत्व की सिद्धि नहीं हो सकती है? जबकि जैन दर्शन पृथ्वी, अप्, अग्नि और वायु को जीव रूप मानता है फिर चाहे आचारांग में अलग से पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीव आदि का उल्लेख न हो किन्तु उसमें प्रथम अध्याय के अन्त में षट्जीव निकाय ऐसा उल्लेख तो है ही, अतः इस शंका का कोई अवकाश नहीं है। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 - - 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524636
Book TitleTulsi Prajna 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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