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चूड़ामणि के अनुसार ओ, अंसे दो स्वर सछिद्र (छेद सहित) होते हैं। अक्षर का उच्चारण अर्थ का व्यंजक होता है। इसलिए उच्चार्यमाण अकार से हकार पर्यन्त सभी अक्षरों को व्यंजनाक्षर कहा जाता है। इस अर्थ में स्वर और अस्वर-सभी वर्ण व्यंजन होते हैं।
लब्धि अक्षर-अक्षर के बोध में मुख्यतः दो इन्द्रियां प्रयुक्त होती हैं- चक्षु और श्रोत्र। चक्षु के द्वारा लिपि की रेखाएं देखी जाती हैं और श्रोत्र के द्वारा भाष्यमाण शब्द सुना जाता है। स्पर्शन आदि इन्द्रियों के द्वारा भी अक्षर का बोध हो सकता है। अक्षर का बोध इन्द्रिय के द्वारा होता है और उसका पर्यालोचनात्मक ज्ञान मन के द्वारा होता है। यह इन्द्रिय और मन के द्वारा होने वाला अक्षर बोध लब्धि-अक्षर है। वह छह प्रकार का है
(1) स्पर्शन इंद्रिय द्वारा विज्ञान (2) रसन इंद्रिय द्वारा विज्ञान (3) घ्राण इंद्रिय द्वारा विज्ञान (4) चक्षु इंद्रिय द्वारा विज्ञान (5) श्रोत्र इंद्रिय द्वारा विज्ञान (6) मन इंद्रिय द्वारा विज्ञान
अ एक अक्षर है। यह संज्ञाक्षर है, इसलिए इसकी नाना लिपियों में नाना रेखाएं बनती हैं। यह व्यंजनाक्षर है, इसका उच्चारण स्थान कंठ है। यह लब्ध्यक्षर भी है, इसलिए इसके द्वारा अनेक अर्थ जाने जाते हैं। अकार के पर्याय
संज्ञाक्षर और व्यंजनाक्षर-ये दोनों पौद्गलिक होते हैं और लब्धि-अक्षर ज्ञानात्मक होने के कारण चेतन होता है। पुद्गल और चेतन दोनों द्रव्य हैं, इसलिए अकार भी एक द्रव्य है। द्रव्य जीन अंशों की समन्विति होता है। उसका शाश्वत अंश ध्रौव्य है। वह अपरिवर्तित रहता है। उत्पाद और व्यय उसके शाश्वत अंश हैं, वे परिवर्तनशील हैं। वही पर्याय है। उन्हीं के आधार पर द्रव्य नाना अव्यवस्थाओं में संक्रांत होता है। पर्याय दो प्रकार के होते हैं-स्व-पर्याय और पर-पर्याय। स्वपर्याय अस्तित्व से सम्बद्ध होते हैं और पर पर्याय नास्तित्व से असंबद्ध होते हैं। इसका तात्पर्य है कि अकार के सभी पर्याय एक साथ व्यक्त नहीं होते। व्यक्त पर्याय अस्तित्व से संबद्ध होते हैं और अव्यक्त पर्याय उस क्षण में असंबद्ध होते हैं। अकार के अथ
अकार के अनेक अर्थ होते हैंसर्वज्ञ, अर्हता शिव, केशव, वायु, ब्रह्म, चंद अग्नि, सूर्य अभाव, स्वल्प।
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008
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