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स्वर के तीन उच्चारण होते हैं-हस्व, दीर्घ और प्लुत-5555 5 । 'आ' 'अ' का दीर्घ उच्चारण है। 'अ' और 'इ' की संधि करने पर 'ए' बनता है। अ+इ=ए। अ और ए की संधि करने पर ऐ बनता है - अ+ऐ=ऐ। 'अ' और 'उ' की संधि करने पर 'ओ' बनता है-अ+उ-ओ। 'अ' और 'ओ' की संधि करने पर औ' बनता है-अ+ओ=औ। इस प्रकार अकार के अनेक पर्याय बन जाते हैं।
हस्व
दीर्घ
प्लुत
उदात्त अनुदात्त स्वरित उदात्त अनुदात्त स्वरित उदात्त अनुदात्त स्वरित
सानुनासिक निरनुनासिक सानु निरनु सानु निरनु सानु निरनु सानु निरनु सानु निरनु सानु निरनु सानु निरनु सानु निरनु
अक्षर
अक्षर की तीन प्रकृतियां होती हैं(1) चक्षु-ग्राह्य प्रकृति-लिपि शास्त्रगत रेखाएं। (2) श्रोत्र-ग्राह्य प्रकृति-उच्चारण शास्त्रगत ध्वनियां (3) ज्ञान-ग्राह्य प्रकृति-वस्तु का अवधारक अर्थ
अक्षर का संबंध लिपि, उच्चारण और ज्ञान - इन तीनों से होता है, इसलिए अक्षर के तीन प्रकार हो जाते हैं। अक्षर का व्युत्पत्ति-लभ्य अर्थ है- जिसका क्षरण न हो वह अक्षर। लिपि और उच्चारण का क्षरण होता है, इसलिए उन्हें उपचार से अक्षर कहा जा सकता है। वास्तव में ज्ञान को ही अक्षर कहा जा सकता है। उसका कभी क्षरण नहीं होता, इसलिए उसमें अक्षर होने की अर्हता है। वास्तविक और औपचारिक-दोनों नयों से अक्षर के तीन प्रकार होते हैं.
(1) संज्ञा अक्षर-आकार (2) व्यंजन अक्षर उच्चारण (3) लब्धि अक्षर-अक्षर से होने वाला ज्ञान
अक्षर का नामकरण उसके आकार से होता है। इसलिए उसकी आकार रचना को संज्ञाक्षर कहा गया है। लिपियां अनेक हैं। ब्राह्मी आदि लिपियां हैं। इसलिए अक्षर की आकृतियां अनेक प्रकार की बन जाती हैं। आचार्य मलयगिरी ने नागरी लिपि के कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये हैं-णकार की रेखाकृति बीच में भाग किये हए चूल्हे की आकृति जैसी होती है। ढकार की आकृति कुत्ते की टेढी हुई पूंछ जैसी होती है।1 अकार की आकृति कुंडली (5) जैसी होती है। केवलज्ञान चूड़ामणि में अकार की मात्रा तिर्यक् बतलाई गई है। 12 अकार और इकार वृत्त, अकार और इकार दीर्घ, उ,ए त्रिकोण, ऊ, ऐ चतुष्कोण, ओ, अंत्रिकोण, औ, अः वक्र होते हैं। केवलज्ञान प्रश्न
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तुलसी प्रज्ञा अंक 140
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