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जगत् को जीवन देने वाला वह जल सन्तान वालों में बड़ा उत्कृष्ट है, जिसका तनय (पुत्र) कमल है, जो कि लक्ष्मी के लीलासदन के रूप में उत्कर्ष प्राप्त कर रहा है। इस कमल का भी क्या वर्णन किया जाए, जिसका पुत्र जगत्त्रयी का स्रष्टा सर्वपूज्य भगवान् ब्रह्मा है।
'औज्वल्यं कान्तिः'' इस रूप में वामनाभिमत कान्ति नामक गुण के उदाहरण के रूप में संकेतकार अपना निम्न पद्य प्रस्तुत करते हैं -
अस्तावनीं विगलितोष्मणि संश्रितेऽर्के, दिक्कामिनीषु रुदतीषु विहंगादैः । सौरभ्यलीनमधुपालिमिषेण राज्ञा, मृत्पिण्डमुद्रितमुखा इव पद्मकोशाः॥ पृ0 193)
उष्णता खो चुके सूर्य के अस्त होने पर, (सूर्यास्त काल में होने वाले) पक्षियों के शब्द के बहाने से दिशा रूपी नारियों द्वारा रुदन सा करने पर, सुगन्धलोलुप भ्रमरों के बहाने से राजा (चन्द्र) ने मानो पद्मकोशों के मुखों को (काले काले) मृत्तिकापिण्डों से बन्द सा कर दिया था। इसके अनन्तर संकेतकार कहते हैं-ओजोऽपि औज्वल्यतस्तर्हि कान्तिस्तस्माललोकसीमानतिक्रमः कान्तिरिति दण्डी । सा चोपकारात्प्रशंसनाच्च।' यहाँ प्रशंसन-विषयक अपना उदाहरण इस प्रकार प्रस्तुत किया है
तदास्यमनु ,गाली गन्धलोभाद् भ्रम्सत्यभात्। ध्रुवं भुवं गतस्येन्दोर्धात्या सेनेव तामसी॥ (पृ0 193)
भ्रमरों की पंक्तियाँ उसके मुख की ओर गन्धलोभ से घूमती हुई ऐसे प्रतीत हो रही थीं, मानो पृथ्वी पर उतरे चाँद के पास तिमिरसेना घूम रही हो । वामनाभिमत अर्थगुण ओज के चार घटकों में से एक घटक है- ‘वाक्यार्थ का व्यास'। संकेतकार इसका उदाहरणभूत अपना निम्न पद्य प्रस्तुत करते हैं
सुखं क्वचित्क्वचिद्दुःखं सुखदुःखं क्वचित्पुनः। • क्वचिन्न दुःखं न सुखमिति चित्रा भवस्थितिः॥ (पृ0 193)
संसार में कहीं सुख है, कहीं दुःख है। कहीं सुख-दुःख दोनों हैं, कहीं न दुःख है, न सुख है। इस प्रकार संसार की स्थिति विचित्र है। वामन के मत में अर्थदृष्टि (नए अर्थ की सूझ) समाधि' नामक अर्थगुण है। इसका स्वरचित उदाहरण संकेतकार ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है
सर्वथा नष्टनैकट्यं विपदे वृत्तशालिनाम्। वारिहारिघटीपार्श्वे ताड्यते पश्य झल्लरी॥ (पृ0 195)
अधिक निकटता वृत्तशाली (गोलाकार व चरित्र-सम्पन्न) के लिए सदा विपत्तिकारक ही होती है। देखो- वारिहारी की घटी (मटकी) के निकट झल्लरी (वाद्यविशेष) ताड़ित होता है। इस पद्य का अन्वय व भाव स्पष्ट नहीं हो पा रहा है।
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2008
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