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________________ जासूसी कहानियों में कैसे प्रवाहित हुआ? शरलॉक होम्स के साहसिक और संकटपूर्ण कारनामों को पढ़ते समय मुझे बार-बार ऐसा लगता रहा कि उसके रचनाकार सर आर्थर कोनन डोयल भी भाव-जगत की उसी प्रकम्पन-श्रृंखला से बंधे थे, बाणभट्ट से दीदी तक जिसका संचरण था और उन सब तक है जो नर-लोक से किन्नर-लोक तक एक ही रागात्मक संवेदना का अनुभव करते हैं और उस रागात्मक में, दीदी की तरह राग-मुक्त होने की ध्वनि सुनते हैं। जिस तरह बाणभट्ट केवल भारत में भी नहीं होते, उसी तरह हितोपदेश भी केवल ज्ञान-ग्रन्थों में ही सीमित नहीं हैं। वह सियार जो दीदी को बुद्ध का सम-सामायिक लगा था, उनके संदेश को सर डोयल की लेखनी में भी डाल देता है। ___ कहीं पढ़ा था- 'उस मक्खी का भाग्य कोई बदले जो गन्दगी पर ही बैठती है।' मधु से परिचय ही उसका भाग्य बदल सकता है। 'बाणभट्ट केवल भारत में ही नहीं होते'- इसका कथ्य उसके पंखों को फूलों की ओर उड़ना सिखाता है और उसे पराग की पहचान देता है। दीदी की यह बात हमें बतलाती है कि जड़ और चेतन का समन्वित रूप ही पूर्ण सत्य है, पर उसे देख पाने की क्षमता चक्षुओं में नहीं, हमारे निरामय मनोभावों में है और उन क्षणों में है जब हमें अवकाश होता है to stand and stare, जब हमें अवकाश होता है to stand and pick up all that is good around us; जब हमें अवकाश होता है to stand and see a lovely garden in a singlerose और जब हमें अवकाश होता है to stand and realise the immortal spirit of the dead within us. ___ अतीत की अमृत ऊर्जा के स्पन्दनों की अनुभूति हमें वहाँ ले चलती है जहाँ सत्य है, शिव है, सुन्दर है, जिन्हें दीदी शोण नदी के बालुका कणों से लेकर आस्ट्रिया तक बाणभट्ट के रूप में खोजा करती थीं और देख भी लेता थीं। 15 नूरमल लोहिया लेन कोलकता 700 007 40 - तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524628
Book TitleTulsi Prajna 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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