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________________ रहता है- सर डोयल की कहानियाँ मुझे यह कहती-सी प्रतीत हुई। अपनी उस अनुभूति को भी आज व्यक्त करता हूँ । सर आर्थर डोयल विश्व के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेखकों में से एक हैं। लगभग सभी देशों की प्रमुख भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हुआ है। गहन षड़यंत्रों की पृष्ठभूमि पर बुना सशक्त कथानक, रोमांचक परिस्थितियाँ, अविरल प्रवाह, बाँध लेने वाली भाषा, चुस्त संवाद और अमलिन अभिव्यक्ति- इन सबके सम्मिलित स्वरों ने उनके साहित्य को वह ऊँचाई दी है जहाँ पहुंचकर लेखनी तूलिका बनती है और लेखन एक जीवंत चित्रकृति की आकृति लेता है । अपराध जगत की जटिल गुत्थियाँ उनकी भाषाओं के विषय हैं और उन्हें सुझलाने में मन और मस्तिष्क की अतल गहराइयों तक उलझे शरलॉक होम्स नाम गुप्तचर उन कथाओं के नायक । सर डोयल के उपन्यासों और कहानियाँ में एक ओर हिंसा और प्रतिहिंसा, घात और प्रतिघात व प्रहार और प्रतिशोध के दुर्दान्त चक्रव्यूह हैं तो दूसरी ओर अपराधों के प्रति निर्लिप्त और उदासीन बने रहकर उन्हें देखते रहने की प्रवृत्ति के साथ समझौता न कर पाने की शरलॉक होम्स की विवशता है। भय और आतंक, उत्पीड़न और अत्याचार एवं कपट और क्रूरता की शतरंज बिछाएं माफिया वृत्ति के जीवित मोहरे और उन्हें मात देने के लिए कटिबद्ध अपने प्राण हथेली में लिए उनके पीछे लगे शरलॉक होम्स ! फिर भी हजारों पृष्ठों के साहित्य में दो-चार स्थलों को छोड़ कर कथा - नायक होम्स द्वारा न कहीं हथियारों का उपयोग हुआ है, न ही कहीं हाथों का। अपराध और उससे जुड़े घटनाक्रम पर वे अपने घर में बैठे विभिन्न कोणों से चिन्तन करते हैं, सुरागों को जाँचते - परखते हैं और art of deduction की अपनी अद्भुत क्षमता के बल पर उन सूत्रों तक पहुंचते हैं जो अपराधी के मन्तव्य और उसकी प्रणाली को स्पस्ट करते हैं । अन्ततः जब वे अपराधी को कानून के सुपुर्द करते हैं, या कुछ कथाओं में जब वह मरता है तो जैसे अपने कर्मों का ही फल भोग रहा होता है। होम्स के मन में अपराधी के प्रति कोई द्रोह, दुर्भाव नहीं होता, इसलिए एक प्रतिद्वन्द्वी द्वारा पराजित किए जाने का भाव अपराधी को पीड़ा नहीं देता । उसे अपने दुष्कर्मों का, अपने पापों का बोध होता है या फिर आदमी द्वारा बनाई गई दोषपूर्ण और नकारात्मक व्यवस्था का वह पक्ष सामने आता है जो उसे अपराध करने के लिए विवश करता है। चार उपन्यास और छप्पन कहानियों में, अधिकांश जिनमें बहुत लम्बी हैं, न कहीं श्लीलता का उल्लंघन है, न अपराधी के प्रति हिंसक भावों का उद्रेक । अपराधों की पृष्ठभूमि पर भी ऐसा साफ-सुथरा सृजन कैसे हुआ ? कर्म-नियति के स्वतःस्फूर्त और स्वचालित अनुशासन के अधीन, दुष्कर्म स्वयं ही कर्ता को सजा देते हैं- दर्शन-ग्रन्थों का यह सार तुलसी प्रज्ञा जुलाई - दिसम्बर, 2006 Jain Education International For Private & Personal Use Only 39 www.jainelibrary.org
SR No.524628
Book TitleTulsi Prajna 2006 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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