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कलश का सुन्दर वर्णन हुआ है। स्मृति साहित्य में अनेक स्थलों पर जलपात्र के रूप में इसका वर्णन मिलता है। स्कन्दपुराण में पार्वती के विवाह के अवसर पर वर्णित मांगलिक चिह्नों में सुवर्णकलश का भी उल्लेख है। मत्स्युराण में श्रीपर्णी लता सहीत पूर्णकंभ को मुख्य द्वार पर रखकर अक्षत एवं जल से पूजने का विधान है। देवालया और भवनों में भी पद्मयुक्त कलश के अंकन का विधान बताया गया है।' ____ कालिदासादि के काव्यों में इसका प्रभूत प्रयोग हुआ है। शकुन्तला के स्तनों को घट से उपमित किया गया है-घटस्तनप्रस्रवनैः व्यवर्धयत् । रघुवंश में सौभाग्य एवं पूर्णता का प्रतीक पूर्णकुम्भ से सुशोभित गृहद्वार का वर्णन है।
आचार्य भतृहरि ने उत्कष्ट युवति के स्तनों की उपमा कनककलश से दी है। अमरुक शतक में 'स्तनकलश' शब्द का प्रयोग हुआ है। पंडितराज जगन्नाथ ने कुम्भ शब्द का प्रयोग किया है-इयं सुस्तनी मस्तकन्यस्तकुम्भा। इस प्रकार काव्यकाल में कलश की उदात्तता, पवित्रता और रमणीयता तथा मंगलचारूता के कारण कौमार्यसम्पन्न कन्याओं के स्तनों के लिए कुम्भ, घट, कलश आदि उपमान के रूप में प्रयोग किया गया है।
___ बौद्ध वाङ्मय में कलश के मांगलिक रूप का दर्शन होता है। ललित-विस्तर में विभिन्न अवसरों पर मांगलिक चिह्नों की सूचियां दी गई हैं। बुद्ध की हथेली पर अंकित चिह्नों में स्वस्तिक, शंख, मीन आदि के साथ कलश का भी उल्लेख प्राप्य है। वहीं पर बुद्ध के जन्म के संदर्भ में गंधोदक से भरा हुआ पूर्णकुंभ का भी वर्णन उपलब्ध होता है । ___ जैन वाङ्मय में इसका प्रभूत वर्णन मिलता है। अष्टमांगलिक द्रव्यों में इसका प्रमुख स्थान है।
भगवतीसूत्र में अनेक प्रकार के कलशों का उल्लेख है। जामालिक्षत्रियकुमार के सिंहासनाभिषेक महोत्सव काल में अनेक कलशों की स्थापना की गई थी। उनमें आठ सौ सुवर्ण कलश, आठ सौ रुपये (चांदी के) कलश, आठ सौ मणि कलश, आठ सौ सुवर्ण और चांदी के मिश्रण से बने कलश, आदि अनेक कलशों का वर्णन है। कलश के मांगलिक जल से उसका स्नान कराया जाता है। शिवभद्रकुमार के राज्याभिषेक समय में भी अनेक प्रकार के मांगलिक कलशों की संस्थापना की गई थी। उद्रायण राजा के अभिषेक काल में भी अनेक मांगलिक कलशों की प्रतिष्ठा की गई थी। इसी प्रकार ज्ञाताधर्मकथा, अंतकृद्दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र आदि में अनेक स्थलों पर कलश के मांगलिक रूप का दर्शन होता है।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 131
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