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________________ ज्योतिशास्त्र के अनुसार श्रीवत्सांकित मनुष्य राजा, चक्रवर्ती सम्राट् श्रेष्ठदानी, धर्मरक्षक एवं धर्मप्रवर्तक होता है । श्रीवत्सांकित पुरुष यज्ञ दानादि में निपुण तथा धनघान्य सम्पन्न होता है । स्त्री के किसी भी अंग में यह चिह्न हो तो वह रानी बनती है । 1 जैन प्रतिमा विज्ञान और श्रीवत्स जैन कला में सबसे प्राचीन तीर्थंकर मूर्तियों पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित मिलता है। मथुरा से प्राप्त होने वाली तीर्थंकर की मूर्तियों के वक्षस्थल पर प्राप्त श्रीवत्सलांछन शुंगयुगीन श्रीवत्स का अंलकृत रूप है 1 मथुरा में मिली ऐसी जैन तीर्थंकरों की १७ मूर्तियां मथुरा के पुरातात्विक संग्रहालय में तथा १४ लखनऊ के राज्य संग्रहालय में हैं । इनके वक्ष पर अंकित श्रीवत्स कुषाण तथा गुप्तकालीन अपने स्वरूप विकास पर अच्छा प्रकाश डालते हैं । विदिशा क्षेत्र में मिली तीर्थंकर मूर्तियों पर भी वैसा ही चिह्न है। मथुरा संग्रहालय की वर्द्धमान की एक आदमकद प्रतिमा के वक्ष पर श्रीवत्स का सुन्दर मध्यमणि के समान चिह्न अंकित है, जिसका स्वरूप लगभग कमल पुष्प जैसा है। लखनऊ के राज्य संग्रहालय की एक जैन प्रतिमा पर कमल जैसा श्रीवत्स अंकित है। अन्यत्र भी एतद्विषयक प्रभूत सामग्री उपलब्ध होती है। ६.३ नन्द्यावर्त नन्द्यावर्त शब्द नन्दि और आवर्त्त दो शब्दों के मल से बना है । नन्दि जनको आवर्ती यत्रः । मांगलिक गृह को नन्द्यावर्त कहते हैं। अमरकोशकार ने ईश्वरसद्यविशेष को नन्द्यावर्त कहा है- स्वस्तिकः सर्वतोभद्रो नन्द्यावर्तादयोऽपि च । विच्छंदक प्रभेदाहि भवंति ईश्वरसद्यनाम ॥ अभिधान चिन्तामणि में अठारहवें तीर्थंकर अर का चिह्न विशेष नन्द्यावर्त बताया गया है।" वहीं पर विशिष्ट ढंग से बने हुए धनवानों के गृह को नन्द्यावर्त कहा है। वृक्षा एक नाम नन्द्यावर्त है । मोनीयरविलिम्स ने संस्कृत - अंग्रेजी कोश में निम्न अर्थों की ओर निर्देश किया हैKing diagram, anything so formed, a palace or temple, a species of large fish, the holy fig&tree any trace, a kind of shell, attitude in dancing. प्राकृत हिन्दी कोश में नन्द्यावर्त (नन्दियावर्त) के निम्नलिखित अर्थ निर्दिष्ट हैस्वस्तिक विशेष, एक लोकपालदेव, क्षुद्रजन्तुविशेष, देवविमानविशेष | I 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 131 www.jainelibrary.org
SR No.524627
Book TitleTulsi Prajna 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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