SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यही कारण है कि महापुरुषों के प्रधान लक्षण में श्रीवत्स की गणना की गई है। जैन तीर्थंकरों के प्रमुख चिह्नों में श्रीवत्स भी एक है। बृहत्संहिता एवं मानसार के अनुसार आजानुलम्बबाहुः श्रीवत्सांकः प्रशान्तमूर्तिश्च। दिग्वासास्तरुणो रूपवांश्च कार्योऽर्हतां देवः। निराभरणसर्वांगं निर्वस्त्रागं मनोहरम्। सर्ववक्षस्थले हेमवर्णश्रीवत्सलांछनम्। जैन अर्द्धमागधी आगम औपपातिक सूत्र में भगवान् महावीर के वक्षलक्षण के रूप में श्रीवत्स का उल्लेख है- सिरिवच्छंकियं वच्छे। उनके हाथ पर स्वस्तिक का भी चिह्न था। प्रवचनसारोद्धार नामक ग्रंथ में तीर्थंकरों के चिह्नों में श्रीवत्सादि का भी उल्लेख है। विष्णु रामादि के श्रेष्ठ चिह्नों में श्रीवत्स का उल्लेख अनेक बार मिलता है। रामायण में श्रीराम विष्णु के अवतार माने गए हैं तथा उन्हें श्रीवत्सवक्ष कहा गया है36 - श्रीवत्सवक्षो नित्यश्रीरजय्यः शाश्वतो ध्रुवः। मानुषं रूपमास्थाय विष्णुः सत्यपराक्रमः॥ महाभारत में श्रीवत्स विषयक एक बड़ी ही रोचक घटना वर्णित है। श्रीरुद्र और श्रीनारायण के बीच युद्ध होता है। युद्ध के बाद जब संधि हुई तो श्री नारायण ने श्रीरुद्र से कहा कि आपके शूल से अंकित मेरे वक्षस्थल का यह चिह्न आज से श्रीवत्स होगा तथा मेरे हाथ से जो आपके कण्ठ में चिह्न अंकित हो गया है, उससे आप श्रीकण्ठ कहलायेंगे अद्यप्रभृति श्रीवत्सः शुलांकोऽयं भविष्यति। मम पाण्यंकितश्चापि श्रीकण्ठस्त्वं भविष्यसि॥ श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण के वक्षःस्थल पर श्रीवत्स सुशोभित थाश्रीवत्सलक्ष्मं गलशोभिकौस्तुभम्।” महाकवि कालिदास ने श्रीविष्णु के वक्षस्थल पर विद्यमान श्रीवत्स का सुन्दर वर्णन किया है। रघुवंश में आया है38 प्रभानुलिप्तश्रीवत्सं लक्ष्मीविभ्रमदर्पणम्। कौस्तुभाख्यामपां सारं विभ्राणं बृहतोरसा ।। कुमारसंभव में प्रथम विधाता (श्री विष्णु) को श्रीवत्स युक्त बताया गया है"-. तमभ्यगच्छत प्रथमो विधाता श्रीवत्सलक्ष्मा पुरुषश्चसाक्षात्। तुलसी प्रज्ञा अप्रेल – जून, 2006 - - 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524627
Book TitleTulsi Prajna 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy