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________________ . ६.४ वर्धमानक _ 'वर्धच्छेदनपूरणयोः' धातु से शानच् शप् मुक् (म) करने पर वर्द्धमान बनता है। पुन: वर्द्धमान शब्द से 'संज्ञायांकन' पाणिनिसूत्र से कन् (क) प्रत्यय होकर वर्द्धमानक शब्द बनता है। वर्धते इति वर्धमानक अर्थात् जो नित्य वर्धनशील हो या वैसा चिह्न विशेष जो नित्य समृद्धिकारक हो वह वर्धमानक है। स्वार्थ में क प्रत्यय होकर भी वर्धमानक शब्द बनता है। धनिकों या देवों या श्रेष्ठजनों के गृहविशेष को वर्धमानक कहा जाता है ।12 बृहत्संहिता में वर्द्धमानक गृह विशेष का लक्षण निर्दिष्ट है। प्राचीन काल का एक विख्यात देश का नाम भी वर्द्धमान या वर्द्धमानक है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार भद्राश्ववर्ष का एक कुलपर्वत विशेष वर्द्धमानक है। अमरकोशकार ने वर्द्धमानक को सराव' कहा है-सरावो वर्द्धमानक: । मोनीयर विलियम्स ने लिखा है- a dish of saucer of a partic. shape. Lid of cover way of joining the hands. a serpent demon, various men. 'प्राकृत-हिन्दी कोश' के अनुसार अठासी महाग्रहों में एक महाग्रह ज्योतिष्क देवविशेष, एक देवविमान, शराव, पुरुष वर आरूढ़ पुरुष, स्वस्तिक-पंचक, एक तरह का महल है। ६.५ भद्रासन श्रेष्ठ, सुखकारक सिंहासन को भद्रासन कहा जता है। अमरकोशकार ने सिंहासन या नृपासन को भद्रासन कहा है-नृपासनं यत्तद् भद्रासनं सिंहासनं तत् । आचार्य हेमचन्द्र ने राजा के बैठने के आसन को भद्रासन कहा है-भद्रासनं नृपासनम्।” भद्राय लोकहिताय आसनम् भद्रासनम् अर्थात् लोककल्याण के लिए बनाया गया राजा का आसन भद्रासन है। योगियों के आसन विशेष को भी भद्रासन कहते हैं। मोनीयर विलियम्स ने निम्न अर्थों की ओर निर्देश किया है-a splendid seat, throne, posture of a devotee during meditation. बृहत्संहिता में भद्रासन का स्वरूप बताया गया है। वह श्रेष्ठ मणियों, सुवर्णों एवं रत्नों का बना होता था। उस पर मृगचर्म, हस्तिचर्म एवं अन्य प्रकार के श्रेष्ठ एवं सुखस्पर्श गद्दों का प्रयोग किया जाता था। साढे तीन हाथ उसकी ऊंचाई होती थी। माण्डलिकों, राज्यविस्तार के इच्छुक राजाओं के लिए वह शुभदायक था। प्रसन्न मन से राजा लोग उस पर बैठते थे। तुलसी प्रज्ञा अप्रेल – जून, 2006 - - 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524627
Book TitleTulsi Prajna 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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