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आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने लिखा है- 'स्वास्थ्य संतुलन में आहार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। दिन का पहला भाग कफ प्रधान होता है। मध्याह्न का भाग पित्त प्रधान होता है और सायंकाल का भाग वात प्रधान होता है। यदि शाम को खरबूजा खायें, अमरूद खायें या उस जैसी दूसरी चीजें खायें तो बीमार ही पड़ेंगे। इसलिए भोजन के साथ हित का विवेक भी होना चाहिए।'
रात्रि के समय हृदय और नाभिकाल संकुचित हो जाने से मुक्त पदार्थ का पाचन भी गड़बड़ हो जाता है। भोजन करके सो जाने पर वह मल और भी संकुचित हो जाता है। भोजन करके निद्रा लेने से पाचन शक्ति घट जाती है और रात को सोना अनिवार्य है, अतः रात को भोजन करना स्वास्थ्य के लिए बड़ा घातक है।
सागार धर्मामृत में लिखा हैमुजतेऽह्य सकृद्वर्या द्विर्मध्याः पशुवत्परे। रात्र्यहस्तव्रतगुणान् ब्रह्मोद्यान्नावगामुकाः॥
उत्तम पुरुष दिन में एक बार, मध्यम पुरुष दो बार और सर्वज्ञ के द्वारा कहे गये रात्रि भोजन त्याग के गुणों को न जानने वाले जघन्य पुरुष पशुओं की तरह रात-दिन खाते हैं अर्थात् जो दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं, वे उत्तम हैं। जो दो बार भोजन करते हैं वे मध्यम हैं, जो रात-दिन खाते हैं वे पशु के तुल्य हैं।
मुनिश्री महेन्द्र कुमार जी ने अपनी पुस्तक 'जैनदर्शन और विज्ञान' पृष्ठ 155 में लिखा है कि रात्रि भोजन न करना धर्म से संबंधित तो है ही, क्योंकि यह धर्म के द्वारा प्रतिपादित हुआ है। इसके साथ इस निषेध का एक वैज्ञानिक कारण भी है। हम जो भोजन करते हैं, उनका पाचन होता है तैजस शरीर के द्वारा। उसको अपना काम करने के लिए सूर्य का आतप आवश्यक होता है। जब शरीर को प्रकाश नहीं मिलता तब वह निष्क्रिय हो जाता है, पाचन कमजोर हो जाता है। इसलिए रात को खाने वाला अपच की बीमारी से बच नहीं पाता।
जब सूर्य का आतप होता है तब कीटाणु बहुत सक्रिय नहीं होते। बीमारी जितनी रात में सताती है उतनी दिन में नहीं सताती । उदाहरणार्थ - वायु का प्रकोप रात में अधिक होता है। ये सारी बीमारियां रात में इसलिए सताती हैं, क्योंकि रात में सूर्य का प्रकाश और ताप नहीं होता। जब सूर्य का प्रकाश होता है, तब बीमारियां उग्र नहीं होती। आचार्य रविषेण ने तो लिखा है
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__ तुलसी प्रज्ञा अंक 129
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