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________________ मासं मद्यं निशामुक्ति स्तेयमन्यस्य योषितम्। सेवते यो जनस्तेन भवे जन्मद्वयं हृतम्॥ पद्मचरित 277 जो मनुष्य मांस, मद्य, रात्रि भोजन, चोरी और पर स्त्री का सेवन करता है वह अपने इस जन्म और पर जन्म को नष्ट करता है। जैनेतर ग्रन्थों में रात्रि भोजन विरति के संदर्भ महाभारत में नरक के चार द्वारों में रात्रि में भोजन को प्रथम द्वार बताते हुए युधिष्ठिर से रात्रि में जल भी न पीने की बात कहते हुए कहा गया है नरकद्वाराणि चत्वारि प्रथमं रात्रि भोजनं। परस्त्री गमनं चैव सन्धानन्तकायिके॥ ये रात्रौ सर्वदाहारं वर्जयन्ति सुमेधसः। तेषां पक्षोपवासस्य पलं मासेन जायते॥ नोदकमपि पातव्यं रात्रावत्र युधिष्ठिर। तपस्विनां विशेषेण गृहिणां च विवेकिना॥ महाभारत अर्थात् रात्रि भोजन करना, परस्त्री गमन करना, आचार, मुरब्बा आदि का सेवन करना तथा कंदमूल आदि अनंतकाय पदार्थ खाना, ये चार नरक के द्वार हैं। उनमें पहला रात्रि भोजन करना है। जो रात्रि में सब प्रकार के आहार का त्याग कर देते हैं उन्हें एक माह में एक पक्ष के उपवास का फल मिलता है। हे युधिष्ठिर ! रात्रि में तो जल भी नहीं पीना चाहिए, विशेषकर तपस्वी को एवं ज्ञान सम्पन्न गृहस्थों को तो रात्रि में जल भी नहीं पीना चाहए। जो लोग मद्य और मांस का सेवन करते हैं, रात्रि में भोजन करते हैं तथा कंदमूल खाते हैं उनके द्वारा की गयी तीर्थयात्रा तथा जप और तप सब व्यर्थ हैं। मद्यमांसाशनं रात्रौ भोजन कन्द भक्षाणाम्। ये कुर्वन्ति वृक्ष तेषां तीर्थयात्रा जपस्तयः॥ गरुड़ पुराण में रात्रि के अन्न को मांस तथा जल को खून की तरह कहा गया हैअस्तंगते दिवानाथे आपो रुधिरमुच्यते। अन्नं मासं समं प्रोक्तं मार्कण्डेय महर्षिणा॥ अर्थात् दिवानाथ यानी सूर्य के अस्त हो जाने पर मार्कण्डेय महर्षि ने जल को खून तथा अन्न को मांस की तरह कहा है। अतः रात्रि का भोजन त्याग करना चाहिए। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2005 - - 89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524624
Book TitleTulsi Prajna 2005 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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