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________________ सच्चरित्र, सुसंस्कृत और सुव्यवस्थित बनेगा। गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ की सत्प्रेरणा से अणुव्रत आन्दोलन के द्वारा नैतिक आचारण के पालन में विशेष योगदान दिया गया है। श्रावक की प्रमुख क्रियायें : आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार गृहस्थ श्रावक की कुछ क्रियायें हैं। यथा- 8 मूलगुण, 12 व्रत-तप, 11 प्रतिमायें, 4 दान, 3 रत्नत्रय, क्षमाभाव, जल छानकर पीना और रात्रिभोजन नहीं करना आदि। इन क्रियाओं में भी जैनाचार्यों ने छह क्रियाओं को आवश्यक नाम से बतलाया है- दान, पूजा, गुरु की सेवा, स्वाध्याय, संयम और तप। इन षट् आवश्यकों में भी आचार्य कुन्दकुन्द ने दान और पूजा को प्रमुख बतलाया है, इसके बिना किसी को भी श्रावक नहीं माना है। यथा दाणं पूया मुक्खं, सावयधम्मे ण सावया तेण विणा। झाणाज्झयणं मुक्खं, जदिधम्मे तं विणा तहा सो वि॥ ___ - आचार्य कुन्दकुन्द - रयणसार 11 आचार्य अमितगति का कहना है- भगवान की पूजा, वन्दना संसार रूपी वन को भस्म करने वाला श्रावक का धर्म है। बिना भक्ति के सद्गति नहीं मिलती। पति की भक्ति से रहित सती, मालिक की भक्ति से रहित नौकर, जिनेन्द्रदेव की भक्ति से रहित जैन और गुरु की भक्ति से रहित शिष्य नियम से दुर्गति के मार्ग में संलग्न माने जाते हैं। दान, पूजा, शील-पालन आदि न करने वाले व्यक्ति नारकी, तिर्यंच, निम्न कोटि के मनुष्य आदि होते हैं । यथा - णहि दाणं पूया, णहि सीलं णहि गुणं ण चारित्तं। जे जइ णा भणिदा ते, णेरइया होंति कुमाणुसा तिरिया॥ विकास का आधार : संयमी व्यक्ति आध्यात्मिक, सामाजिक एवं पारिवारिक, जीवन के विकास में श्रावक-धर्म की भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण है। जैन समाज की रीढ़ श्रावक-धर्म है। श्रावक की व्यक्तिगत साधना ही समाज के उत्कर्ष का कारण होती है। इसलिए श्रावक अपने समाज की प्रगति अथवा अभ्युत्थान करने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। श्रावक अपने परिवार का नहीं, समाज और राज्य का भी मुख्य व्यक्ति होता है। समग्र परिवार के भरणपोषण की व्यवस्था, बालकों को सुसंस्कारी बनाने की जिम्मेदारी, परिवार में सुख 68 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 129 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524624
Book TitleTulsi Prajna 2005 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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