________________
प्रकार तैल, वर्तिका एवं अग्नि परस्पर विरुद्ध होने पर भी अन्धकार का नाश करने के लिए एक साथ मिलकर प्रकाश रूप कार्य को उत्पन्न करते हैं, वैसे ही तीनों गुण मिलकर के कार्य करते हैं।
जैसा कि स्पष्ट हो चुका है कि सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष अकर्ता है। वह मात्र साक्षी रूप है। सारा कर्तृत्व प्रकृति का है। संसार के सम्पूर्ण पदार्थ त्रिगुणात्मक हैं। बुद्धि, मन, शरीर, इन्द्रिय एवं सम्पूर्ण बाह्य पदार्थ प्रकृति से ही निष्पन्न हैं। अतः इन सबमें प्रधान एवं गौण रूप से तीनों ही गुण विद्यमान रहते हैं। जिस पदार्थ में जिस गुण की प्रधानता होती है, उसे उस गुण का कार्य माना जाता है। वस्तुतः जिस समय सत्त्व गुण प्रधान होता है, उस समय गौण रूप से अन्य दो गुण रज एवं तम भी वहाँ ही रहते हैं, यही स्थिति सभी गुणों की है। एक की प्रधानता में अन्य दो गौण हो जाते हैं। आत्म-बंधकारक
अविद्या से आक्रांत पुरुष प्रकृति के गुणों से बंधा रहता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को संबोधित करते हुए कहते हैं
हे अर्जुन ! सत्त्व, रज और तम प्रकृति से उत्पन्न ये तीनों गुण अविनाशी आत्मा को शरीर में बांधते हैं।12
जीव को सत्त्व गुण सुख की आसक्ति तथा ज्ञान के बंधन से बांधता है, तृष्णा से उत्पन्न रागात्मक रजोगुण कर्म की आसक्ति से तथा अज्ञान एवं मोह से प्रादुर्भूत तमोगुण प्रमाद, आलस्य एवं निद्रा से जीव को बाँधता है।13
गुण : प्रधानता-गौणता
किस समय कौन-सा गुण प्रधान है, इसका अनुमान उस गुण के कार्यों के द्वारा लगाया जा सकता है । यथा- जब शरीर में सब द्वारों से अर्थात् इन्द्रिय और मन आदि से प्रकाश एवं ज्ञान उत्पन्न हो रहा है तो समझना चाहिए अभी सत्त्व गुण की प्रधानता है। रजोगुण के बढ़ने पर लोभ, क्रिया, कार्यों का प्रारम्भ, अशान्ति, विषय-भोगों की लालसा आदि उत्पन्न होते हैं। तमोगुण की वृद्धि होने पर अज्ञान, आलस्य, प्रमाद और मोह उत्पन्न होते हैं।14 गुणों के कार्य
सत्त्वगुण से ज्ञान, रजोगुण से लोभ तथा तमोगुण से प्रमाद, मोह और अज्ञान उत्पन्न
36
-
-
तुलसी प्रज्ञा अंक 127
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org