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पंच भूत
सात्विक अहंकार
राजस अहंकार तामस अहंकार
पांच तन्मात्राएँ मन एवं पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ
समस्त संसार सृष्टि एवं लय
सांख्य के अनुसार सृष्टि एवं लय दोनों प्रकृति के ही होते हैं। लय का क्रम सृष्टिक्रम से ठीक विपरीत है। सृष्टि के समय जो तत्त्व जिस कारण से उत्पन्न होते हैं, लय के समय वे तत्त्व उसी अपने कारण में विलीन हो जाते हैं। जैसे पंच महाभूत अपनीअपनी तन्मात्रा में विलीन होंगे। तन्मात्राओं का लय तामस अहंकार में एवं मन, पंच ज्ञानेन्द्रियों एवं पाँच कर्मेन्द्रियों का विलय सात्त्विक अहंकार में, अहंकार का महत् तत्त्व में एवं महत् तत्त्व का विलय प्रकृति में होगा। त्रिगुण की साम्यावस्था में लय तथा विक्षोभावस्था में सृष्टि होती है।
प्रकृति का विकास इसकी अपनी तीन घटक शक्तियों अर्थात् तीन गुणों से होता है। प्रकृति एक त्रिगुणात्मक (तीन लड़ों वाली) रस्सी है। गुण प्रत्यक्ष के विषय नहीं हैं किन्तु इनके कार्यों द्वारा इनके अस्तित्व का अनुमान किया जाता है। बुद्धि में सुख, दुःख में सम्मोह – ये गुण पाए जाते हैं। बुद्धि प्रकृति से उत्पन्न होती है, प्रकृति बुद्धि का कारण है। बद्धि प्रकृति का कार्य है। अतः जो गुण बुद्धि में पाए जाते हैं वे गुण इसकी कारण रूप प्रकृति में अवश्य ही होने चाहिए।
संसार के समस्त पदार्थों का सृजन इस त्रिगुणात्मिका प्रकृति से होता है। संसार के समस्त पदार्थों में प्रधान एवं गौण रूप से ये तीनों ही गुण विद्यमान रहते हैं। तीन गुणों का स्वरूप
गुण तीन हैं - सत्त्व, रजस एवं तमस। सत्त्व गुण सुखात्मक एवं प्रकाशक है। रजोगुण दुःखात्मक एवं प्रवर्तक है तथा तमोगुण मोहात्मक एवं नियामक (अवरोधक) है। जैसा कि
"प्रीत्यप्रीतिविषादात्मकाः प्रकाशप्रवृत्तिनियमार्थः"
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तुलसी प्रज्ञा अंक 127
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