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________________ इकवीस जाति सूं मिलतो थको ए, घणी जाति रो धोवण जांण। ते पिण लेणो ए, तिणरी न करे मूढ पिछांण॥ 6 ।। अनेरो सस्त्र परिणम्यां थकां ए, वर्ण ने रस फिर जाय। ते धोवण लेणो साधु नें ए, ते विकलां में खबर न काय ॥7॥ कहे धोवण में जीव उपजें ए, दोय घडी में आय । ते पिण सूतर में नहीं ए, झूठा थका बोले मूसाबाय॥ 8 ॥ ततकाल रो धोवण नहीं वेंहरणों ए, घणी बोलां रो धोवण लेणो जांण। दसवैकालक' में कह्यो ए, तोही करे अग्यांनी तांण ।। 9॥ कहे धोवण में जीव उपजें ए, ते अन तणे परवेश। एहवो झूठ बोलनें ए, कर रह्या कूड कलेश॥10॥ जो धोवण में जीव उपजें ए, तो रोटी में ई उपजे आंण। दोय घडी मझे ए, ए लेखो बरोबर जाण ॥ 11 ॥ इमहिज दाल खीच घाट में ए, इत्यादिक सगली अन जांण। सगलां में जीव उपजें ए, धोवण सूं यांने ल्यो पिछाणं ।। 12॥ कठे पांणी थोडो नें अन घणो ए, कठे अन थोडो पाणी अत्यन्त। पांणी नें अन सर्व में ए, यां सगलां रो एक विरतंत॥ 13॥ दूध री जावणी रा धोवण मझे ए, यांमें उपजें बेइंद्री आय। तो दूध में पिण उपजें ए, पांणी मिले * तिण मांय ॥ 14 ॥ वले दही में छाछ रा धोवण मझे ए, यांमें उपजें बेइंद्री। तो उपजें दही छाछ में ए, पांणी मिले छे यारे ई मांय 15 ।। जिण जिण दरब रा धोवण मझे ए, जो उपजें बेइंद्री आय। तो दरब में ई उपजें ए, पांणी मिले छे दरब रे मांय 6 ॥ इतरा काल पछे जीव उपजें ए, ते सूतर में न कह्यो भगवंत। उपजता जीव जांण नें ए, बहरें नहीं मतिवंत ॥ 17 ॥ 81. (b) तेरापंथ धर्म-संघ में आचार्यों द्वारा सचित्त-अचित्त के विषय में जो निर्णय किए जाते हैं, उन्हें मर्यादावली में मर्यादा के रूप में मान्य किया जाता है। उदाहरणार्थ देखेंश्रीमज्जयाचार्य कृत मर्यादा-वृहद् मर्यादा (बड़ी मर्यादा) सं. 1908 का माघ सुदी 15 के दिन जयाचार्य पाट बिराज्या पछे त्यां विशेष बंद्योबस्ती कीधी ते लिख्यते(आचार्यों द्वारा समय-समय पर व्यवहार के आधार पर कृत मर्यादाएं-) तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2004 ___ 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524620
Book TitleTulsi Prajna 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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