SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 81. (a) स्थानकवासी और तेरापंथ धर्मसंघ में बर्तनों का धोवण पानी अचित्त मानकर ग्रहण करने की परम्परा प्राचीन काल से प्रचलित थी। जब इस पर कुछ लोगों ने यह कहकर आपत्ति की कि इसमें दो घड़ी में द्वीन्द्रिय आदि जीव पैदा हो जाते हैं, तो आचार्य भिक्षु ने उसका स्पष्टीकरण किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि धोवण पानी अचित है तथा उसमें द्वीन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति की बात आगम-मान्य नहीं है। देखें, आचार्य भिक्षु कृत श्रद्धा की चौपाई ढाल 31, श्री भिक्षु-ग्रन्थ-रत्नाकर (खंड-1), प्रकाशक तेरापंथी महासभा, कलकत्ता, सन् 1960, पृष्ठ 772-777, आचार्य भिक्षु, श्रद्धा की चौपाई, ढाल 32 ढाल : 31 दुहा केई जेंनी नांम धराय नें, बोले झूठ अतीव । साधु धोवण बहरे तेह में, कहे बेईद्री जीव ।।1।। ते पोतें तो धोवण पीवें नहीं, पिये त्यांने निंदे दिन रात। ते अन्हाखी थका बकवो करे, त्यांरा घट मांहें घोर मिथ्यात ।। 2 ।। जिभ्या रो स्वाद तज्यां बिना, धोवण पियो किम जात। तिणसूं धोवण उथा बहरणो, झूठी कर कर मुख सूं बात॥ 3 ॥ केई कहे वासी आहार में, एकण रात रे मांहिं । जीव बेइंद्री उपजें, तिण सूं साधां ने वहरणो नांहि ॥ 4 ॥ पोतें ठंडो आहार भावे नहीं, तिण सूं उंधी परूपें एम। एहवा हिंसाधा रा लक्षण बुरा, ते सुणज्यो धर प्रेम ।। 5 ॥ ढाल कसाई विचे तो कुगुर बुरा ए, त्यारे दया नहीं लवलेश। छ काया मारण तणो ए, दे पापी उपदेश । पाखंडी गुर एहवा ए, उन्हों पांणी धरावे करे आमना ए।। 1 ।। पछे भर भर ल्यावे ठांम, आधाकर्मी भोगवे ए। त्यांरा दुष्ट घणा पिरणांम, भविक निरणो करो ए॥ पा.2 ।। करडो काठो धोवण भावे नहीं ए, उन्हों पाणी लागे स्वाद। तिण सूं अन्हाखी थका ए, करे कूडी विषवाद ॥ 3 ।। कहे धोवण में उपजे घणा ए, दोय घडी पाछे जीव। ए उंधी परूपनें ए, दे छे कुगति नी नींव॥ 4 ॥ धोवण इकवीस जाति नों ए, साधु नें लेणो कह्यो जिण आप। आचारांग सूतर' में ए, ते कुगुरां दीयो उथाप॥ 5 ॥ 64 तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524620
Book TitleTulsi Prajna 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy