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पेंटीयम वगैरह कम्प्यूटर्स की मुख्य चीप भी गरम होती ही है। इसलिए उसको aust करने के लिए हीटसिंक और पंखे का उपयोग किया जाता है। इसलिए वहाँ भी जीव - विराधना होती है, यह स्पष्ट ही है । "
उत्तर - इलेक्ट्रीसीटी स्वयं निर्जीव है, ऐसा स्पष्ट सिद्ध होने पर भी इन सब साधनों का साधु स्वयं संचालन कर सकते हैं, ऐसा मानना उपयुक्त नहीं है। जिन साधनों के प्रयोग में किसी भी प्रकार की हिंसा कृत, कारित, अनुमोदित रूप में न हो तथा अन्य महाव्रतों, समिति, गुप्ति की विराधना न हो, ऐसे साधनों का उपयोग साधु स्वयं करे या न करे, यह व्यवहार का प्रश्न है। उदाहरणार्थ - - सेल द्वारा संचालित घड़ी का प्रयोग करने में ऐसा कहीं पर नहीं होता, इसलिए यह वर्ज्य नहीं है। माइक या लाईट गृहस्थों के उपयोग के लिए गृहस्थ प्रयुक्त करे, इसमें साधु को दोष कैसे लगेगा? फोन, फैक्स, टेलेक्स आदि भी व्यवहार के विषय हैं। जो-जो चीजें कल्पनीय हैं, वे सारे करना साधु के लिए जरूरी नहीं हैं । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षाओं के आधार पर इनका प्रयोग- अप्रयोग निर्दिष्ट हो सकता है ।
इसी प्रकार माईक आदि का प्रयोग भी गृहस्थ लोग अपनी सुनने की सुविधा के लिए करते हैं । जैसे पण्डाल, स्टेज आदि सभा की सुविधा के लिए निर्मित होते हैं, वैसे ही माइक, स्पीकर, एम्पलीफायर आदि का प्रयोग भी गृहस्थ लोग अपनी सुविधा के लिए करते हैं । यदि पण्डाल, स्टेज आदि का उपयोग साधु करते हैं तो उन्हें दोष नहीं लगता तो माईक में साधु की आवाज चली जाने से उसका दोष साधु को कैसे लगेगा? (टेलीफोन की प्रक्रिया में विद्युत् ऊर्जा का ध्वनि के रूप में परिवर्तित होना भी पौद्गलिक परिणमन है। जहाँ तक तेउकाय की विराधना का संबंध है, टेलीफोन में बात करने से ऐसा होने की संभावना नहीं है ।)
सौर सेल में सौर ऊर्जा से विद्युत् ऊर्जा पैदा की जाती है। इसमें भी केवल पौद्गलिक परिणमन ही है, सचित्त तेउकाय का प्रसंग नहीं बनता। जहां माईक आदि में गर्मी होती है, तो यह वह जीव कृत नहीं हैं, इस प्रश्न का उत्तर हैं बहुत सारे पौद्गलिक परिणमन ऐसे हैं, जहाँ गर्मी या उष्मा पैदा होती है, विस्त्रसा परिणमन केवल पौद्गलिक हैं, उन्हें जीव द्वारा कृत नहीं माना जा सकता। परम्पर रूप में सृष्टि के सभी परिणमनों में जीव और पुद्गल का संयोग किसी-न-किसी रूप में जुड़ा हुआ है । किन्तु उसका तात्पर्य यह नहीं है कि अनंतर रूप में सभी परिणमन में जीव का योग अवश्य है । (विस्तृत चर्चा प्रश्न 23 के उत्तर में की जा चुकी है ।)
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तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126
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